टोल-टैक्स चोरी का चक्कर !

इन दिनों सहारनपुर की महिला अधिकारी का पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। दरअसल उक्त अधिकारी ने राज्य की एक कैबिनेट मिनिस्टर बेबी रानी मौर्य के लिये सहारनपुर की काष्ठकला का कुछ सामान लखनऊ भेजा था। सामान के साथ ही एक पत्र भी भेजा कि- मंत्री का सामान है, टोल-टैक्स मत लेना। पत्र लीक होने पर अब उक्त अधिकारी पर आंच आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

क्या इस प्रकरण में उक्त अधिकारी ही दोषी है ? ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को बहुत सोच समझ कर खरीद-फरोख्त करनी पड़ती है। पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा ने हमें बचपन की घटना सुनाई। तब वे किंग जॉर्ज स्कूल में पढ़ते थे। तत्कालीन पुलिस कप्तान का पुत्र पिताश्री का सहपाठी था। एक दिन कप्तान साहब ने, जब दोनों बंगले पर थे, उन्हें बुलाया और कहा कि एक बोरी गेहूं मंडी से ले आओ। कुछ रुपये भी दिये। पिता जी ने धीरे से कहा- बंगले पर इतने सिपाही है, क्या वे नहीं ला सकते? उन्होंने कहा- ‘नहीं, सिपाही से नहीं मंगाना। जैब में पैसे रखेगा या रौब डाल कर एक के बजाय 2 बोरी गेहूं लायेगा। रास्ते भर लोग देखेंगे और कहेंगे- देखो कप्तान के यहाँ हराम का माल जा रहा है। इस लिये पैसे लो और गेहूं ले आओ।’

यह घटना सब कुछ समझने के लिए काफी है। एक दृष्टांत पुरुषोत्तम दास टंडन का है। सन् 1928 में लेजिस्लेटिव असेंबली के स्पीकर थे। विधानसभा भंग हुई तो वापिस इलाहाबाद लौटे। लखनऊ जाने से पहले इलाहाबाद के मेयर थे। सामान वापिस आया। खर्च में टोल-टैक्स की रसीद नहीं थी। पूछा तो कारिन्दे ने कहा- सर, मेयर हो कर भी क्या हम टोल-टैक्स देंगे? सुनकर बहुत भड़के। बोले- मेयर होकर टोल-टैक्स नहीं देंगे तो कौन देगा? टैक्स चोरी सिखाते हो। जाइये टैक्स भरिये और हमें रसीद दिखाइये!

पता नहीं आज राजनीति में पी.डी. टंडन, रफी अहमद किदवई और चरणसिंह जैसे लोग पैदा क्यों नहीं होते? अधिकारी को बलि का बकरा बनाने से सुधार नहीं होने वाला!

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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