किसी ने कहा था कि कल्चर के नाम पर मुजफ्फरनगर में सिर्फ एग्रीकल्चर ही है किंतु ऐसा नहीं है। यह तो सत्य है कि मुजफ्फरनगर की पहिचान कला एवं संस्कृति के केंद्र के रूप में नहीं रही किंतु इस जिले में भी कला, साहित्य, एवं संस्कृति के क्षेत्र में मुजफ्फरनगर का नाम रोशन किया है। साहित्य क्षेत्र की बात करें तो शमशेर बहादुर सिंह, विष्णु प्रभाकर, आनंद प्रकाश जैन, गिरिराज किशोर ने हिंदी साहित्य में ऊंचा स्थान बनाया।
यह भी संयोग रहा कि मुजफ्फरनगर के इन नामचीन साहित्यकारों का साहित्य करियर मुजफ्फरनगर से बाहर ही विकसित हुआ। ‘आवारा मसीहा’ के रचयिता विष्णु प्रभाकर का जीवन कुंडेवालान (दिल्ली) में बीता, शमशेर बहादुर सिंह अपने पैतृक ग्राम एलम में कभी गये ही नहीं। ‘कठपुतली के धागे’ उपन्यास के लेखक आनंद प्रकाश जैन दीर्घकाल तक बंबई (मुंबई) में टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप की मासिक पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे और शाहपुर लौट कर नहीं आये। ‘पहला गिरमिटिया’ के रचनाकर गिरिराज किशोर जमींदार परिवार का ऐशो इशरत पूर्ण जीवन त्याग युवाअवस्था में ही मुजफ्फरनगर छोड़ गये थे और कानपुर को ही अपना ‘घर’ बना लिया था।
गिरिराज किशोर अपने उपन्यास ‘पहला गिरमिटिया’ से खूब प्रसिद्ध हुए। जिसमें महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास के घटनाक्रम का जीवंत वर्णन था। इसी प्रकार उन्होंने कस्तूरबा गांधी के वास्तविक जीवन का अपने उपन्यास ‘बा’ में वास्तविक चित्रक किया। उनकी लेखकीय प्रतिभा को दृष्टिगत रख ऊ.प्र.हिंदी संस्थान, म.प्र.साहित्य कला परिषद, साहित्य अकादमी, के.के बिरला फाउंडेशन, हिंदी साहित्य सम्मेलन आदि प्रतिष्ठित संस्थानों ने सम्मानित किया। गिरिराज किशोर कानपुर विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव तथा आईआईटी कानपुर के कुल सचिव भी रहे। 23 मार्च 2007 को राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने गिरिराज किशोर को उनकी साहित्यिक तथा शिक्षा क्षेत्र की सेवाओं के लिए ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। 8 जुलाई 1937 में मुजफ्फरनगर में जन्मे गिरिराज किशोर का 9 फरवरी, 2020 को 83 वर्ष की अवस्था में हृदयगति रुकने से निधन हो गया।
कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध एवं रेडियो तथा टी.वी साक्षात्कारों के माध्यम से हिंदी साहित्य की सेवा करने वाले मुजफ्फरनगर के इस सपूत को जन्मदिवस पर हमारा नमन!
गोविंद वर्मा
संपादक देहात