जलवायु परिवर्तन से इस बार समय से पहले ही अलनीनो का प्रभाव हावी हो गया है। जिसकी वजह से कानपुर मंडल समेत पूरे प्रदेश के तराई वाले जिलों को छोड़कर बारिश का सिलसिला टूट गया है। मानसूनी हवाओं की दिशा बदलने बारिश वाले बादल बनना बंद हो गए हैं।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विभाग प्रमुख डॉ. एसएन पांडेय ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के हवाले से बताया है कि इस सीजन में जून से लेकर अभी तक पूर्वी उप्र में बारिश की मात्रा 29 प्रतिशत कम दर्ज की गई है। डा. पांडेय के अनुसार आगामी 30 सितंबर तक चलने वाले मानसून माह में बारिश की संभावना कम हो गई है। इससे धान व खरीफ की अन्य फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
मौसम विभाग के अनुसार नए अध्ययन में यह सामने आया है कि उत्तर भारत में मानसूनी बारिश पर अल नीनो सदर्न आसिलेशन (ईएनएसओ) का प्रभाव हाल के दशकों में असाधारण रूप से मजबूत हुआ है।
जिसकी वजह से बारिश का वितरण और स्वरूप प्रभावित हुआ है। यही वजह है कि कानपुर मंडल क्षेत्र के साथ पूर्वी यूपी में अलनीनो का असर अधिक हो गया है। मौसम विभाग के अनुसार इससे साफ है कि आने वाले दिनों में इन क्षेत्रों में बारिश को लेकर बड़ा संकट पैदा हो सकता है।
अलनीनो ने बदल दी मानसून की दिशा
किसी भी क्षेत्र में अच्छी बारिश के लिए हवाओं की दिशा तय है। मौसम विभाग के अनुसार अरब सागर से होकर हवाएं दक्षिण भारत होते हुए बंगाल की खाड़ी से निकलती हैं, जो आगे पूर्वोत्तर हिमालयी राज्यों से निकलते हुए मध्य क्षेत्र, राजस्थान होते हुए जम्मू कश्मीर तक जाती है।
मौसम विभाग प्रमुख डा. पांडेय के अनुसार इस बार के अध्ययन में यह सामने आया है कि मानसूनी हवाएं कानपुर मंडल, बुंदेलखंड व प्रदेश के तराई वाले जिलों को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर मानसूनी हवाएं इतनी ज्यादा ऊंचाई पर है कि उसकी वजह से बारिश वाले बादल नहीं न पा रहे हैै। ऐसी स्थिति में बारिश का सिलसिला जो सितंबर तक लगातार चलना चाहिए था वह टूट गया है।जून से लेकर 9 अगस्त में अब तक बारिश की स्थिति उप्र में
2020-21 के बीच…640.2 मिमी
2021-22 के. बीच..726 मिमी
2022-23 के बीच 516.. मिमी
इस बार अलनीनो का प्रभाव पूरे प्रदेश में है। यूपी के तराई वाले क्षेत्रों को छोड़कर बाकी जिलों में यह स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। इस बार पिछले वर्षों की अपेक्षा 29 प्रतिशत बारिश अभी तक कम दर्ज की गई है। आगे भी जिस तरह से मानसूनी हवाओं की दिशा ऊपर की ओर चल रही है, उससे बारिश वाले बादल बनने की संभावना कम हो गई है।-डा. एसएन पांडेय
मौसम विभाग प्रमुख सीएसएक्या कहते हैं जलवायु विज्ञानी?
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे के जलवायु विज्ञानी के नए अध्ययन के मुताबिक, यह वह क्षेत्र हैं, जहां कृषि और आजीविका काफी हद तक मौसमी वर्षा पर निर्भर है। ईएनएसओ व मानसून के बीच संबंध समय के साथ विकसित हुआ है।
मौसम विज्ञानी बताते है की वर्ष 1901 से वर्ष 1940 तक यह मजबूत हुआ, वर्ष 1941 से वर्ष 1980 तक स्थिर रहा, वर्ष 1981 के बाद से यह कमजोर हो गया। ईएनएसओ-मानसून संपर्क में यह परिवर्तन पूरे देश में समान नहीं है।
हाल के दशकों में बढ़ा अल नीनो का प्रभाव
मौसम विज्ञानी ने कहा कि उत्तर भारत पर ईएनएसओ का प्रभाव हाल के दशकों में बढ़ा है, जबकि मध्य भारत, जिसे कोर मानसून क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, उसके लिए संबंध कम हो गया है। दक्षिण भारत में ईएनएसओ-मानसून संबंध में कोई महत्वपूर्ण भिन्नता नहीं है।