उत्तराखंड: कम मतदान ने बढ़ा दी सियासी दलों की धङकन

उत्तराखंड की चुनावी सियासत में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति की यह जानने की इच्छा है कि प्रदेश के मतदाता किस दल को सत्ता की बागडोर सौंपने जा रहे है। चाय की दुकान से लेकर सरकारी दफ्तरों और सचिवालय गलियारों तक हर जगह यह सवाल सबकी जुबान पर है।

ऐसी दशा में सबकी निगाहें सियासी पंडितों पर जाकर टिक जाती हैं, लेकिन निर्वाचन आयोग ने मतदान का जो अंतिम आंकड़ा जारी किया है, उसके अनुसार इस बार मत प्रतिशत 2017 के विस चुनाव से मामूली रूप से कम है। राजनीति में यह धारणा रही है कि जब जनता बड़ी तादाद में वोट करने के लिए घरों से बाहर निकलती है तो उसे बदलाव के तौर पर देखा जाता है।

लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 65.37 प्रतिशत मतदान हुआ, जो पिछले चुनाव की तुलना में 0.18 प्रतिशत कम है। पिछले चुनाव में 65.55 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस वोट प्रतिशत पर भाजपा 57 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल करने में कामयाब रही थी। इस बार भी मत प्रतिशत तकरीबन उतना ही है। ऐसे में सियासी पंडित यह अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि 53 लाख 42 हजार 462 मतदाताओं ने किसके पक्ष में मतदान किया।

राज्य के चुनावी इतिहास पर दौड़ाएं नजर

आखिर प्रदेश में किस पार्टी की सरकार बनने जा रही है। राज्य के चुनावी इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो 2002 में पहले विस चुनाव में 54.34 प्रतिशत वोट पड़े थे और कांग्रेस सत्ता में काबिज हुई। 2007 में वोट प्रतिशत बढ़ा और कांग्रेस की सत्ता से विदाई हुई। 2012 में फिर वोट प्रतिशत बढ़कर 66.17 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई, लेकिन 2017 में वोट प्रतिशत में कुछ गिरावट आई और यह 65.56 प्रतिशत पर अटक गया।

इस वोट प्रतिशत में भाजपा ने प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। 2022 के चुनाव में कुछ मतदान में थोड़ी सी ही कमी आई। सियासी जानकार इस थोड़ी कमी के चुनावी निहितार्थ नहीं निकाल पा रहे हैं। प्रदेश में सरकार किस दल की बन रही है, ये बता पाने में सियासी जानकार बेशक मुश्किल महसूस कर रहे हों, लेकिन भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने गणित के हिसाब से प्रदेश में सरकार बना रहे हैं।

रोचक तथ्य यह है कि दोनों ही दल खुद को 40 से अधिक सीटें दे रहे हैं।  सियासी जानकार 70 विधानसभा सीटों में एक सीट आम आदमी पार्टी को, दो उत्तराखंड क्रांति दल को, दो बहुजन समाज पार्टी को और तीन निर्दलीयों को दे रहे हैं। इनमें से ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस भी अपना दावा कमजोर मान रही है।

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