फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने मिलावट के आरोपी की सजा रद्द की

सुप्रीम कोर्ट ने खाद्य मिलावट के आरोपी एक दुकानदार की सजा ये कहते हुए रद्द कर दी कि आरोपी को संबंधित खाद्य सैंपल को जांच के लिए सेंट्रल फूड लेबोरेटरी भेजने का हक है। जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस ओका ने कहा कि खाद्य मिलावट रोकथाम कानून, 1954 की धारा 13 के तहत ये अनिवार्य है कि स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकारी उस व्यक्ति को खाद्य पदार्थ की सरकारी जांच रिपोर्ट मुहैया कराए जिसके पास से खाद्य का सैंपल लिया गया है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 13 की उप धारा (2) कहती है कि जिस व्यक्ति को रिपोर्ट भेजी गई है उसे ये सूचना दी जानी चाहिए कि यदि वह चाहे तो रिपोर्ट प्राप्त होने के 10 दिनों के अंदर अदालत में आवेदन देकर सैंपल को सेंट्रल फूड लेबोरेटरी में विश्लेषण के लिए भेजने की मांग कर सकता है। जिस व्यक्ति से सैंपल लिया गया है, अभियोजन की कार्यवाही शुरू होने के बाद उसे जांच रिपोर्ट देना जरूरी है।

कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपी को रिपोर्ट की प्रति नहीं दी जाती तो सेंट्रल फूड लैब से जांच कराने के उसके अधिकार का हनन होता है। फलस्वरूप, रिपोर्ट को गलत करार देने का उसका अधिकार छिन जाता है और इससे खुद का बचाव करने का उसका अधिकार प्रभावित होता है। सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ नारायण प्रसाद साहू की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने साहू की पुनिर्विचार याचिका खारिज कर दी थी।

यह था पूरा मामला
अभियोजन का केस था कि 16 जनवरी, 2002 को वह कागपुर के साप्ताहिक बाजार में चना दाल बेच रहा था। इस दौरान एक खाद्य निरीक्षक ने उससे विक्रेता लाइसेंस दिखाने को कहा जो वो नहीं दिखा पाया। खाद्य निरीक्षक ने उससे 750 ग्राम चना दाल खरीदा और उसके तीन हिस्से करके जांच के लिए सरकारी एजेंसी को भेजे गए। जांच रिपोर्ट का दावा था कि चना दाल में मिलावट थी। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसे छह महीने की कैद और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। सत्र न्यायालय ने उसकी सजा को बरकरार रखा। साहू ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दी और 2018 में वहां भी उसकी याचिका खारिज हो गई। तब उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जहां उसे जीत मिली।

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