कैसा स्वच्छता अभियान ?

1 अक्टूबर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर महात्मा गांधी के जन्मदिन से एक दिन पूर्व देश भर में एक घंटे का स्वच्छता श्रमदान अभियान चला। कल (2 अक्टूबर) के अखबारों में आप पढ़ेंगे और टी.वी. पर देखेंगे कि कैसे बड़े-बड़े नेता, मंत्री, सांसद, विधायक, अधिकारी गण, स्कूली बच्चे ‘सफाई श्रमदान’ में जुटे हैं।

सफाई के प्रति जागरूकता लाने के लिए यह अच्छा कदम है किन्तु यह रस्म अदायगी भर है, सच्चे हृदय से किया गया श्रमदान प्रतीत नहीं होता।

सफाई की महत्ता क्या है, यह हमने बचपन से ही जान लिया था। हमारे परनाना हरदोई जिले से मुजफ्फरनगर आकर सेनेटरी इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। बाद में नाना जी ब्रज बहादुर उनके स्थान पर तैनात हुए। तब चीफ इंस्पेक्टर राजकुमार अस्थाना थे। दो सफाई निरीक्षक और तैनात थे। नई मंडी की स्थापना हो चुकी थी। चारों सुबह 4 बजे उठ कर पूरे शहर, मंडी का दौरा करने और सफाई कराने घोड़ी पर निकल जाते और 8 बजे घर लौट आते। 10 बजे चुंगी के दफ्तर (पालिका कार्यालय) जाते थे। सड़‌कों, नालों, नालियों में तिनका भी नज़र नहीं आता था।

आज स्थिति यह है कि जिला अस्पताल के सी.एम.ओ. कार्यालय के पास, अस्पताल की दीवार के ठीक बराबर में गन्दगी, कूड़े के अम्बार लगते है। लद्धावाला जाने वाले रस्ते, शिवचौक पर हनुमान मन्दिर के ठीक सामने और मुख्य सड़‌क मेरठ रोड पर बर्फखाने के पास, उससे आगे मुख्य मार्ग पर पेट्रोल पम्प के नजदीक दिन-रात कूड़े के ढेर लगे रहते हैं। सफाईकर्मी 10 बजे आकर कूड़ा, गन्दगी उठाते हैं जिसकी दुर्गन्ध व गर्द आसपास की खाद्य पदार्थों की दुकानों पर उड़-उड़‌ कर जमती रहती है।

शामली रोड, काली नदी का हाल बुरा है। भोपा रोड पर मॉल के समीप भी यही हाल है। कई दशकों से कूड़ा निस्तारण प्लांट की बात हवा में तैर रही है। शहर-मंडी में सफ़ाई की स्थिति नियंत्रण से बाहर है। नागरिक अपने-अपने घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों का कूड़ा पन्नी में भर के रोज नालियों के हवाले करते हैं। और तो और, तीर्थनगरी शुक्रताल की सोलानी नदी गंदगी से अटी पड़ी है। सफाई कर्मी चेयरमैन के आवास के सामने गन्दगी का ढेर लगा कर अपनी मांगें मनवा लेते हैं और नालियों में रोज कूड़ा सरकाने वाले नागरिक नगरपालिका व सरकार को कोसते रहते हैं। यह स्वच्छता अभियान की असलियत है। अविरल गंगा अभियान की भाँति स्वच्छता अभियान में भी आकड़ेबाजी हो रही है। शायद यह पूरे देश की स्थिति है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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