जब आता है बन्दर के हाथ में उस्तरा !

6 मई को सभी चैनलों और यूट्यूब पर दिल्ली के भाजपा नेता तेजिन्दर पाल सिंह बग्गा को पंजाब पुलिस द्वारा उनके घर से उठा ले जाने और फिर उन्हें ‘अगवा’ किये जाने की रिपोर्ट पर दिल्ली व हरियाणा पुलिस द्वारा कुरुक्षेत्र के थानेसर में ‘मुक्त’ कर दिल्ली की अदालत में पेश किये जाने का सनसनीखेज समाचार छाया रहा। इस खबर के बाद टी.वी. चैनलों तथा सोशल मीडिया पर भी जंग चालू हो गया। सभी जानते हैं कि श्री बग्गा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की राजनीति पर तीखे हमले करते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने केजरीवाल पर एक ट्वीट किया था जिससे सी.एम. साहब भिन्नाये हुए हैं। गिरफ्तारी का यह तमाशा इसी पृष्ठभूमि के तहत हुआ है। केजरीवाल को बग्गा की आलोचना हज्म नहीं हुई और पंजाब में उनके विरुद्ध गिरफ्तारी का ब्रह्मास्त्र दगवा दिया।

केजरीवाल का यह आचरण ठीक ऐसा ही है जैसा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पत्रकार अर्णव गोस्वामी के साथ किया था। कंगना रनौत के कार्यालय को फर्नीचर व कंप्यूटरों समेत रौंदा गया और फिर उनके अखबार में गर्व से छापा गया- लो उखाड़ लिया। मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने पर नवनीत राणा और रवि राणा को सत्ता की हनक में कैसे प्रताड़ित किया गया, यह पूरा देश जानता है। विशेष न्यायधीश आर. एन. रोकड़े ने कहा है कि राणा दम्पत्ति पर राष्ट्रद्रोह का मामला नहीं बनता किन्तु महाराष्ट्र के गद्दीधारी सत्ता के नशे में चूर हैं। शिवसेना की नीतियों की आलोचना करने पर नौसेना के रिटायर्ड अधिकारी की आंख फोड़ने के बाद संजय राउत ने बडे़ दम्भ से कहा था- गलत बोलोगे तो शिवसैनिक ऐसा ही करेंगे।

ममता की मदांधता के विषय में कौन नहीं जानता? विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल की हिंसक करतूतों के बाद भी वे राष्ट्रीय मानव आयोग और राज्यपाल जगदीश धनखड़ को धता बताती रहीं। यही नहीं, उनके चेले-चपाटे आये दिन महामहिम राज्यपाल से बअदबी करते हैं और ममता उनकी पीठ ठोकती हैं। विपक्षी कार्यकर्ताओं की निर्दयता से हत्या करने का उनका खेला जारी है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पश्चिमी बंगाल में उपस्थिति के बीच भाजपा कार्यकर्ता अर्जुन चौरसिया की हत्या कर दी गई।

यह स्वीकार करना पड़ेगा कि राज नेताओं में सहनशीलता और बर्दाश्त की सीमा खत्म होती जा रही है। सत्तामद में चूर नेता मर्यादाओं को तिलांजलि दे चुके हैं। शीर्ष न्यायालय से फटकार के बाद भी राहुल ने चौकीदार चोर है के नारे लगा के तालियां पिटवाईं। लोकतंत्र के मन्दिर में आंख मारने और जबरदस्ती गले पड़ने के अमर्यादित आचरण से उन्हें लाज नहीं आती। केजरीवाल खुद ओ मोदी ओ मोदी कह कर भाषण शुरू करते थे और अब प्रधानमंत्री की मीटिंग में अंगडाइयां लेकर अभद्रता दिखाते हैं।

जब तक सरकारों या विपक्ष में पुराने संघर्षशील नेता रहे, राजनीति में शालीनता की लक्षमणरेखा नहीं लांघी गई। सदन में डॉ. राममनोहर लोहिया, एन. जी. रंगा, जैड. ए. अहमद, जार्ज फर्नांडीज, प्रकाशवीर शास्त्री, अटल बिहारी वाजपेयी, राजनारायण जैसे प्रखर ओजस्वी नेता थे जो सत्तादल और उनके नेताओं पर आलोचना के तीक्ष्ण वाण चलाते थे किन्तु जवाहरलाल नेहरु, इन्दिरा गांधी ने आलोचनाओं से आपा नहीं खोया और न ही व्यक्तिगत बदले का कोई ओछा प्रयास किया। सम्भवतः कुछ लोगों को याद होगा कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने पर जयललिता ने कैसे अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्दी करुणानिधि को अर्द्धरात्रि में उनके बंगले से घसीट कर गिरफ्तार कराया था। पुरानी पीढ़ी के जाने के बाद नये-नये सत्ताधारियों को कुर्सी की ताकत हज्म नहीं हो रही है। यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात

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