ईडी-सीबीआई से कौन डरता है?

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों खासी चर्चा में हैं। चर्चा में निरन्तर बने रहना नेता की ख़ुसूसियत है। कुछ दिनों पहले जब लोकसभा सीटों के बंटवारे में उन्होंने 80 में से 17 सीटें देकर राहुल गांधी को घुटने टिकवाये, तब उनके प्रशंसकों ने खूब वाहवाही की थी।

स्वामी प्रसाद मौर्य के जरिये रामचरितमानस को फुंकवाने और अयोध्या में श्रीरामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार कराने के बाद आखिलेश यादव को यह याद दिलाने की आवश्यकता पड़ी कि वे भगवान् श्रीकृष्ण के खानदानी हैं।

राज्यसभा की तीसरी सीट हार जाने के बाद भी उनके हौसले बुलन्द हैं और वे 80 में से 80 सीटें जीतने की गारंटी दे रहे हैं। उनके समर्थकों ने यह दावा तो नहीं किया कि अखिलेश प्रधानमंत्री बनेंगे, अलबत्ता यह गारंटी जरूर दी है कि अखिलेश की मर्जी के बिना नया प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। इस हौसले को दाद देनी चाहिये।

अब, जब राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग का झटका लगा और 2012-16 के बीच हमीरपुर के बड़े खनन घोटाले में सीबीआई ने उन्हें तलब किया तो वे अरविन्द केजरीवाल की तर्ज पर कह रहे हैं कि चुनाव नजदीक है तो सीबीआई बुलायेगी ही। सपा के मुख्यमंत्रित्वकाल के खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को जेल जाना पड़ा, 50 करोड़ रुपये की सम्पत्ति जब्त हुई, सीबीआई के पास घोटाले से संबंधित 23 फाइलें हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर तत्कालीन जिला अधिकारी, खनन अधिकारी सहित 11 लोगों पर केस दर्ज है। सीबीआई उन्हें गवाह के तौर पर बुला रही है लेकिन वे सीबीआई के समन को लोकसभा चुनाव से जोड़ रहे हैं। यह एक कुशल नेता की पहचान है।

गत 22 फरवरी को मुजफ्फरनगर के एक विवाह समारोह में वे पधारे थे। उन्होंने मीडिया से कहा कि भारतीय जनता पार्टी भारतरत्न बांट कर चुनाव जीतना चाहती है। उनका इशारा चौ. चरण सिंह को प्रदान किये गए भारतरत्न अलंकरण की ओर था लेकिन वे भूल गए कि जब मुलायम सिंह ‌यादव को पद्म विभूषण मिला तब डिम्पल यादव ने कहा था कि मोदी ने हमारा अपमान किया है, मुलायम सिंह को तो भारतरत्न मिलना चाहिये था।

किसी ने कहा था कि होशियार सेल्समैन वह है जो गंजे को भी कंघा बेच दे। राजनीति के मैदान में वही नेता कामयाब है जो बात‌ फरोशी से चुनाव जीत जाए। जनसेवा और राष्ट्रहित चाहने वाले नेता तो बिरले होते हैं। चुनाव सिद्ध करेगा कि वे क्या हैं? ईडी या सीबीआई से डरना क्या दर्शाता है?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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