इन दिनों उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुल्डोजर और उनकी प्रशासनिक क्षमता की प्रदेश से बाहर भी खूब चर्चा हो रही है। भले ही विपक्षी नेता बाबा का बुलडोजर और भगवा आतंक के मिथ्या आरोप बढ-़चढ़ कर लगा रहे हों किन्तु अवैध कब्जे हटाने या शान्ति-व्यवस्था कायम रखने के लिए योगी पूर्ण निष्पक्षता और बिना भेदभाव एक कुशल प्रशासक की भांति काम कर रहे हैं। जो लोग दबंगई, धींगामस्ती, रसूख या मुठमर्दी के बल पर अकूत सम्पत्ति अथवा जमीन हथियाये हुवे थे उन्हें इन दिनों बहुत परेशानी हो रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में दशकों से चली आ रही वंशवादी राजनीतिक व्यवस्था पर कुठाराघात कर रहे हैं तो योगी सत्ताभोगी राजनीति के विरुद्ध कमर कसे हुए हैं। जो लोग राजनीति को पेशा समझते हैं उन्हें इस बदलाव से हैरानी भी और परेशानी भी हो रही है। हैरत नहीं कि इनमें सत्तारूढ़ दल के वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें पार्टी के सिद्धान्तों या नेतृत्व की विचारधारा से कुछ लेनादेना नहीं है, बस सिर्फ और सिर्फ अपने स्वार्थ से वास्ता है।
अभी एक दो दिन के भीतर सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं जो यह संदेश देते हैं कि भाजपा की अनुशासन, नियम पालन और जनसेवा की बातें केवल मंच पर बोलने के लिए हैं, व्यावहार में वे भी कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी ही सत्ता की हनक दिखाने वाली पार्टी है। एबीपी ने आज बलिया की भाजपा विधायक केतकी सिंह व उनके समर्थकों की बेजा हरकत का दृश्य दिखाया है। भाजपा विधायक अतिक्रमण हटाने पर दल-बल सहित तहसीलदार के कार्यालय पर पहुंचीं और बड़ी ही बेअदबी से तहसीलदार को धमकाते हुए पूछा कि तुम बुलडोजर लेकर कैसे पहुंच गए जब कि तुम्हें कहा गया था कि अतिक्रमण नहीं हटेगा। इतना ही नहीं, विधायक का मुंहलगा एक चमचा तहसीलदार को धमकाते हुए उनसे हाथापार्द करने को तत्पर हो रहा है और विधायक चुपचाप यह सब तमाशबीन बनी देख रहीं हैं। इससे साफ प्रतीत होता है कि यह बेहूदगी उनके इशारे पर ही हो रही है।
ऐसा ही एक दृश्य गाजियाबाद का है जहां भाजपा के एक नेता जी पुलिस इंस्पैक्टर से उलझे पड़े हैं। वे सड़क पर भगवती जागरण कराने की अनुमति चाह रहे थे किन्तु पुलिस ने शासकीय आदेश का हवाला देकर इजाजत देने से साफ इंकार कर दिया। इस पर नेताजी आपे से बाहर हुए जा रहे हैं। क्या उन्हें ज्ञात नहीं कि योगी जी ने सार्वजनिक मार्ग पर धार्मिक कार्यक्रमों पर पाबन्दी लगाई हुई है? यदि उन्हें पता नहीं तो ऐसे अज्ञानी का भाजपा में क्या काम है? यदि पता है तो नियमों का पालन कराने वाले अधिकारी से व्यर्थ में ही क्यों उलझ रहे हैं?
ये दोनों घटनायें दर्शाती हैं कि सेवा के लिये नहीं अपितु अपना रुतबा बढ़ाने के लिए ही अधिकांश नेता किसी दल का दामन थामते हैं। जिन कारनामों के लिये सपा और बसपा बदनाम रहीं वहीं आचरण भाजपा के नेता या जनप्रतिनिधि करने लग जायेंगे तो भाजपा का सुशासन और आदर्शवाद का दावा धोका सिद्ध होगा। जो नेता, सांसद, विधायक या पदाधिकारी सभ्य आचरण न करे और निजी स्वार्थ को मर्यादाओं से ऊपर मानता हो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाये ताकि जनता में गलत सन्देश न जाये। विशेषतः जो लोग कर्त्तव्यपालन करने वाले अधिकारियों का अपमान करते हैं उनके प्रति पार्टी का रुख कठोर होना चाहिये। मतदाताओं ने सत्ता परिवर्तन व्यवस्था बदलने को किया था। लोग यह न कहने लगें की जैसे सांपनाथ वैसे ही नागनाथ।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’
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