ये डॉ. राममनोहर लोहिया के बेशर्म चेले !


भारत की वर्तमान राजनीति में दो ऐसे परिवार हैं जो खुद को कहते तो यदुवंशी हैं लेकिन लोकतंत्र एवं चुनावी हथकंडों के बल पर अपने ही वंश-परिवार को पुष्पित-पल्लवित करने में पीढ़ियां गुज़ार दी हैं।

ये राम को या कृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं या नहीं, यह चर्चा इनके लिए फिजुल है। अलबत्ता प्रखर समाजवादी चिन्तक डॉ. राममनोहर लोहिया को प्रामाणिक रूप से अपना पथप्रदर्शक, राजनीतिक गुरु और प्रेरक बताते हैं। डॉ. लोहिया के नाम पर कई संस्थान, कई ट्रस्ट आदि खोले गए। लोहिया जी की सप्तक्रांतियों का नाम लेकर पिछड़ों-दलितों-अल्पसंख्यकों की पीड़ाओं की नींव पर अपनी राजनीति का शीशमहल खड़ा किया। नाम कबीर जैसे ठेठ सन्त का, काम किसका और कैसा, यह जग ज़ाहिर है।

वे डॉ. राममनोहर लोहिया, राम को भारत के राष्ट्रदेवता मानते थे, इस सच्चाई को जानते हुए भी नकली लोहियावादी स्वीकार नहीं करेंगे, क्यूं कि सच्चाई कबूलेंगे तो परिवारवाद की राजनीति का पुराना एजेंडा खत्म हो जायगा। इन्हें लोहिया के राम को नहीं मानना, इनका स्वार्थ तो रामायण फड़वाने और फुंकवाने से सिद्ध होता है।

इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं, फोटो हैं, लेख हैं और अखबारों की कतरनें भी हैं। इनमें से कुछ हमारे पास भी हैं, कि डॉक्टर साहब राम को भारत की एकता व भारतीय संस्कृति का आधार मानते थे। उन्होंने चित्रकूट में विशाल विराट रामायण मेला आयोजित करने की योजना की कल्पना की। यह 1961 बात है।

लोहिया जी के मन-मस्तिष्क में राम और रामायण मेला का विचार पुष्ट होता चला गया। 1965 में चित्रकूट के तत्वकालीन नगरपालिका अध्यक्ष गोपालकृष्ण करवरिया के आवास पर लोहिया जी ने अनेक विशिष्टजनों के साथ राम के चरित्र व रामायण पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि राम के चरित्र जैसा चरित्र कही नहीं मिलता। उसका पूरे देश में पूर्व,पश्चिम, उत्तर, दक्षिण प्रसार और प्रचार होना चाहिए। इस बैठक में आचार्य बलदेव प्राद गुप्त, गोविन्द प्रसाद अग्रवाल तथा राजनारायण सिंह आदि अनेक दिग्गज शामिल थे। डॉ. साहब का कहना था कि रामायण देश की सभी भाषाओं में प्रकाशित होनी चाहिए। उनके बुलावे पर उर्दू के प्रसिद्ध शायर शम्सी मीनाई भी शरीक हुए। बाद में मीनाई साहब ने राम पर जो लिखा वह आज भी आदर के साथ पढ़ा और सुना जाता है। लोहिया जी ने भारत के प्रसिद्ध चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन से कहा कि तुम बड़े-बड़े लोगों के चित्र बनाते हो, कुछ ऐसा भी बनाओ जो देश के आम आदमी से जुड़ा हो। उनके कहने से फ़िदा हुसैन ने रामायण से सम्बंधित 150 पेंटिंग तैयार कीं। इनमे 8 वर्षों का समय लगा। लोहिया जी के कहने पर पेंटिंग्स को पूरे चित्रकूट में प्रदर्शित किया गया था।

डॉ. लोहिया का रामायण मेला आज किस स्थिति में है, यह अलग प्रश्न है। यक्ष प्रश्न यह है कि जो नेता डॉ. लोहिया के नाम पर अपना खोटा सिक्का चलाने में जुटे हैं, वे राम के अनुयायी तो नहीं है, क्या वे डॉ. लोहिया के भी अनुयायी नहीं रहे ?

गोविन्द वर्मा

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