समुद्र से लेकर जंगलों-पहाड़ों तक ट्रेनिंग में तपकर कुंदन बनते हैं आईएफएस

पहले यूपीएससी की कठिन परीक्षा और इसके बाद प्रशिक्षण की अग्निपरीक्षा। तब कहीं जाकर इंदिरा गांधी नेशनल फॉरेस्ट एकेडमी (आईजीएनएफए) देहरादून से एक आईएफएस निकलता है। इस प्रशिक्षण में जहां एक ओर समुद्र, जंगल और पहाड़ाें समेत विभिन्न दुर्गम क्षेत्रों की यात्राएं प्रशिक्षणार्थियों को जीव और जंगल का नजदीकी से अनुभव और अहसास कराती हैं।

वहीं दूसरी ओर 16.5 महीने की ट्रेनिंग में पढ़ाए जाने वाले 25 विषयों में जीव-जंगल की चुनौतियों से निपटने और इनके संरक्षण की तकनीकी और बारीकियां सीखने का मौका मिलता है। आईएफएस की ट्रेनिंग दो साल की होती है। इसमें साढ़े तीन महीने का फाउंडेशन कोर्स पूरा होने के बाद 16.5 महीने की प्रोफेशनल ट्रेनिंग देहरादून स्थित आईजीएनएफए में होती है। इसके बाद चार महीने की फील्ड में ऑन द जॉब ट्रेनिंग होती है।

ट्रेनिंग के इन सभी हिस्सों के मूल्यांकन के बाद आईजीएनएफए की ओर से डिप्लोमा दिया जाता है। देहरादून में आईएफएस की ट्रेनिंग का देश का यह एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान है, जहां से हर साल करीब 100 आईएफएस ट्रेनिंग लेकर देश सेवा के लिए तैयार होते हैं।

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प्रयोगात्मक ज्ञान करते हैं हासिल
एकेडमी के अपर प्राध्यापक डॉ. एम सुधागर बताते हैं कि ट्रेनिंग में 25 विषय पढ़ाए जाते हैं। इसके बाद छह टूर कराए जाते हैं। एक विदेशी टूर भी होता है। ईस्ट इंडिया टूर के तहत रूचि के अनुसार समुद्र, वन और पहाड़ों पर भेजा जाता है। जहां प्रशिक्षणार्थी चुनौतियों के बीच जलवायु, पौधरोपण, भूस्खलन, हिमस्खलन, कार्बन फुटप्रिंट, पर्यावरण, प्रदूषण आदि का प्रयोगात्मक ज्ञान हासिल करते हैं।

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जंगलों में खुद को जीवित रखने का भी हुनर

आईजीएनएफ के प्रोफेसर राजकुमार वाजपेयी बताते हैं कि ट्रेनिंग के दौरान क्वालिफाइंग स्किल भी सीखनी होती हैं। इसके तहत हॉर्स राइडिंग, स्वीमिंग, हथियार चलाने के साथ ही जंगलों में खुद को कैसे सुरक्षित रखे जाने के हुनर विकसित किए जाते हैं। इसके अलावा संसदीय कार्यप्रणाली सीखने के लिए भी टूर कराया जाता है। खुद को फिट रखने के लिए सुबह के समय पीटी और शाम को गेम्स में भाग लेना अनिवार्य होता है।

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बर्ड वाचिंग के साथ ही नेचर से जोड़ती हैं क्लब की गतिविधियां

प्रोफेसर राजकुमार वाजपेयी ने बताया कि ट्रेनिंग का अहम हिस्सा क्लब भी होते हैं। इसमें प्रशिक्षणार्थी लेटरेरी के अंतर्गत लेखन एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। जबकि नेचर एंड सस्टेनेबिलिटी के अंतर्गत कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए गतिविधियों का आयोजन करते हैं। वहीं बर्ड वाचिंग के अंतर्गत पक्षियों की बोली सुनकर उनके व्यवहार का अध्ययन करते हैं। एडवेंचर क्लब में भी कई रोमांचक गतिविधियां होती हैं। एनजीओ के साथ ही काम किया जाता है।

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पेड़ों की बीमारी से लेकर उनका घनत्व निकालने की दी जाती है तकनीकी जानकारी

डॉ. एम सुधागर ने बताया कि ट्रेनिंग के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को पेड़ों का आयतन और घनत्व आदि का आकलन करने की तकनीकी जानकारी दी जाती है। साथ ही पेड़ों में बीमारियों पता लगाने एवं उनके निदान के गुर भी सिखाए जाते हैं।

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