बिना सहमति नसबंदी और नवजात की मौत, केजीएमयू के डॉक्टरों पर एफआईआर

हरदोई/लखनऊ। हरदोई जिले के शाहबाद क्षेत्र के रतनपुर आंझी गांव निवासी हेमवती नंदन ने लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के कुलपति और क्वीन मैरी अस्पताल की चार महिला डॉक्टरों पर गंभीर आरोप लगाते हुए धोखाधड़ी, जालसाजी और धमकी देने का मामला दर्ज कराया है। उनका आरोप है कि उनकी पत्नी की बिना अनुमति नसबंदी कर दी गई, और इसके लिए फर्जी हस्ताक्षर किए गए। कोर्ट के आदेश पर 13 जून को चौक थाने में मामला दर्ज किया गया है। शिकायत में उत्तर प्रदेश सरकार को भी प्रतिवादी बनाया गया है।

डिलीवरी के बाद हुई अप्रत्याशित नसबंदी

पीड़ित के अनुसार, 4 अक्टूबर 2022 को उन्होंने गर्भवती पत्नी उमा मिश्र को क्वीन मैरी अस्पताल में भर्ती कराया था। यहां डॉक्टर अमिता पांडेय, मोनिका अग्रवाल, निदा खान और शिवानी ने इलाज शुरू किया। 5 अक्टूबर को ऑपरेशन के माध्यम से उमा ने बेटे को जन्म दिया। हालांकि नवजात की स्थिति नाजुक होने के कारण उसे वेंटिलेटर पर रखा गया, जहां उसकी मौत हो गई।

हेमवती नंदन का आरोप है कि इस ऑपरेशन के साथ ही बिना पूर्व जानकारी या सहमति के उनकी पत्नी की नसबंदी भी कर दी गई। जब उन्होंने दस्तावेजों की जांच की, तो पाया कि स्वीकृति पत्र पर उनके जाली हस्ताक्षर किए गए हैं।

शिकायत करने पर धमकी का आरोप

उन्होंने बताया कि इस गंभीर लापरवाही की शिकायत अस्पताल प्रशासन, स्थानीय पुलिस, केजीएमयू वीसी और मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर भी की गई, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। उल्टा, उन्होंने दावा किया कि डॉक्टरों की ओर से उन्हें धमकाया गया। इसके बाद उन्होंने न्यायालय की शरण ली, जहां से आदेश मिलने के बाद चौक थाने में मामला दर्ज हुआ।

इन धाराओं में मुकदमा दर्ज

एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 338 (लापरवाही से जान को खतरा), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के इरादे से दस्तावेज तैयार करना) और 506 (धमकी) शामिल हैं। यह मामला भारतीय न्याय संहिता लागू होने से पहले का है, इसलिए मुकदमा आईपीसी के तहत दर्ज किया गया है।

केजीएमयू की प्रतिक्रिया

इस प्रकरण पर केजीएमयू प्रवक्ता प्रो. केके सिंह ने बताया कि एफआईआर की प्रति रविवार को प्राप्त हुई है, लेकिन इसमें सभी तथ्य स्पष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा, “डॉक्टरों पर केस दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन हैं, जिनका पालन आवश्यक है। हम यह देख रहे हैं कि क्या इन दिशानिर्देशों का पालन हुआ है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टरों के हित में कानूनी लड़ाई भी लड़ी जाएगी।”

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