उत्तर प्रदेश के इटावा में एक कथावाचक के साथ दुर्व्यवहार का मामला अब राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना को लेकर विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसी संदर्भ में प्रसिद्ध कवि और वक्ता डॉ. कुमार विश्वास ने पहली बार अपनी प्रतिक्रिया दी है और कथावाचक का समर्थन करते हुए खुलकर अपनी राय रखी है।
“धार्मिक ग्रंथ लिखने वाले ब्राह्मण नहीं थे” – कुमार विश्वास
न्यूज़ चैनल एनडीटीवी को दिए गए एक साक्षात्कार में कुमार विश्वास ने कहा कि कथावाचक जिस कथा का वाचन कर रहे थे, वह श्रीकृष्ण की कथा है, जिसे एक मछुआरा जाति से संबंध रखने वाले वेदव्यास ने लिखा है। उन्होंने कहा, “महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य जिन महर्षियों ने रचे, वे न तो ब्राह्मण थे, न क्षत्रिय और न ही वैश्य। फिर भी पूरी धार्मिक व्यवस्था उन्हीं ग्रंथों पर आधारित है।”
कुमार विश्वास ने आगे कहा कि किसी की जाति के आधार पर उसे धार्मिक मंच से वंचित करना धर्म की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने अपील की कि व्यासपीठ की मर्यादा को बनाए रखा जाए और यह विषय यदि किसी को आपत्तिजनक लगता है तो कानूनी मार्ग अपनाया जाए, न कि अपमानजनक व्यवहार।
“नापसंद है तो मत सुनिए, पर अपमान स्वीकार्य नहीं”
अपने साक्षात्कार में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी को कथा वाचक पसंद नहीं हैं, तो उसे सुनने न आएं, परंतु उनके साथ अमर्यादित आचरण करना गलत है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस मामले को गंभीरता से लेकर शांतिभंग करने वालों की गिरफ्तारी को एक सकारात्मक कदम बताया।
ओपी राजभर का बयान – “शादी और पूजा ब्राह्मणों का अधिकार”
वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने इस मुद्दे पर एक अलग राय रखी। उन्होंने कहा कि विवाह और पूजा-पाठ का कार्य पारंपरिक रूप से ब्राह्मणों का रहा है और यदि अन्य जातियों के लोग इस कार्य में हस्तक्षेप करेंगे तो सामाजिक असंतोष उत्पन्न हो सकता है।