उत्तराखंड पर डबल संकट: बारिश से तबाही, पिघलते ग्लेशियरों से झीलें बनी खतरा

उत्तराखंड इन दिनों मौसम की दोहरी मार झेल रहा है। एक ओर मानसून की भारी बारिश ने जीवन अस्त-व्यस्त कर रखा है, वहीं दूसरी ओर ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघलते ग्लेशियर प्रशासन और वैज्ञानिकों की चिंता का विषय बने हुए हैं। इसके कारण राज्य में कई ग्लेशियर झीलों का आकार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे उनके फटने का खतरा मंडराने लगा है। इस विषय पर आई एक वैज्ञानिक रिपोर्ट ने स्थिति की गंभीरता को और उजागर किया है।

लगातार बारिश से बिगड़े हालात, येलो अलर्ट जारी

राज्य के कई क्षेत्रों में भारी बारिश का सिलसिला लगातार बना हुआ है। देहरादून, टिहरी, बागेश्वर और चंपावत जिलों में मौसम विभाग ने येलो अलर्ट जारी किया है। तेज बारिश के चलते कई स्थानों पर भूस्खलन की घटनाएं सामने आई हैं और नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। प्रशासन ने लोगों से नदी-नालों के समीप न जाने की अपील की है।

ग्लेशियर झीलों की संख्या और खतरे में इजाफा

देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मेहता और उनकी टीम ने हाल ही में हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर एक अध्ययन किया है। इस शोध में यह बात सामने आई कि तेज़ी से पिघलते ग्लेशियरों के चलते कई नई झीलें बन रही हैं और पहले से मौजूद झीलों का आकार खतरनाक स्तर तक बढ़ रहा है।

उत्तराखंड की 25 झीलें बेहद संवेदनशील

राज्य में लगभग 1266 ग्लेशियर झीलें मौजूद हैं, जिनमें से 426 झीलों का वैज्ञानिक अध्ययन किया गया। इनमें 25 झीलों को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। ये झीलें विशेष रूप से उन क्षेत्रों में स्थित हैं, जो ग्लेशियरों के बहुत करीब हैं, जिससे इनके टूटने की आशंका सबसे अधिक है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि इनमें से कोई झील फटती है, तो इसके परिणामस्वरूप भारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

अलकनंदा घाटी में सबसे ज्यादा खतरा

इन संवेदनशील झीलों में सर्वाधिक संख्या अलकनंदा घाटी में पाई गई है, जहां 226 झीलें दर्ज की गई हैं। इनमें कई का आकार खतरनाक रूप से बढ़ चुका है। दूसरी ओर, पिंडर घाटी में झीलों की संख्या सबसे कम है और वहां किसी भी झील को अत्यधिक खतरे की श्रेणी में नहीं रखा गया है।

आपदा प्रबंधन के लिए बढ़ती चुनौती

जलवायु परिवर्तन के असर से बनती और फैलती इन झीलों पर नजर रखना वैज्ञानिकों और आपदा प्रबंधन विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। यदि समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य के निचले क्षेत्रों में बाढ़ और तबाही की आशंका बनी रह सकती है।

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