देशभर में दीपावली पर्व का शुभारंभ धनतेरस से होता है और यह भाई दूज तक चलता है। दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी, काली चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान हनुमान और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विशेष विधान है।

छोटी दिवाली का समय और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 20 अक्टूबर तक मान्य रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 19 अक्टूबर को शाम 5:47 बजे से शुरू होगा। अभ्यंग स्नान का समय सुबह 5:12 बजे से 6:25 बजे तक निर्धारित है।

पूजा विधि
छोटी दिवाली की पूजा सूर्यास्त के बाद की जाती है, जिसे शाम 6 बजे से 9 बजे तक संपन्न किया जा सकता है। इस दिन भगवान कृष्ण, माता लक्ष्मी, हनुमान जी और यमराज की पूजा की जाती है। पूजा के लिए घर और मंदिर की सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें। स्नान के बाद भगवान गणेश, मां दुर्गा, शिव, विष्णु और सूर्यदेव की स्थापना कर उन्हें अर्घ्य दें।

दीपक और पूजा के उपाय
इस दिन कुल 14 दीपक जलाने की परंपरा है। इनमें यमराज, मां काली और भगवान कृष्ण के लिए दीपक शामिल हैं। घर के मुख्य द्वार, रसोई, तुलसी के पास और छत पर दीपक जलाना शुभ माना जाता है। यमराज को प्रसन्न करने के लिए दक्षिण दिशा की ओर एक चौमुखा दीपक रखें और प्रार्थना करें कि वे अकाल मृत्यु और नरक के भय से मुक्ति दें।

छोटी दिवाली का महत्व
छोटी दिवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध कर 16,100 महिलाओं को मुक्त किया था। यमराज की पूजा से अकाल मृत्यु से बचाव होता है और अभ्यंग स्नान से शरीर की सुंदरता और स्वास्थ्य बढ़ता है।

छोटी और बड़ी दिवाली में अंतर
छोटी दिवाली, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस कहते हैं, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। वहीं मुख्य दिवाली अमावस्या को आती है, जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे।

छोटी दिवाली पर दीपदान, अभ्यंग स्नान और पूजा से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है बल्कि यह घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा भी लाता है।