बदमाशों, गुंडों को मुठभेड़ों में मारे जाने पर लोगों की जिज्ञासा शान्त करने में मीडिया का सक्रिय रहना स्वाभाविक है लेकिन दुर्दान्त माफिया अतीक, उसके भाई अशरफ व बेटे अरशद को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो असाधारण सक्रियता दिखाई, वह कई प्रश्न पैदा करता है। कुख्यात बदमाश विकास दुबे से लेकर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त अतीक व उसके गुर्गों, शार्प शूटरों के एनकाउंटरों पर असदुद्दीन ओवैसी, अखिलेश यादव, मायावती, जयन्त चौधरी, ममता बनर्जी, रामगोपाल यादव और जयराम रमेश जैसे नेता कैसे इसे मजहबी व जातीय रंग चढ़ा कर 2024 के चुनावों की तैयारी में जुटे हैं, इस पर टिप्पणी करना व्यर्थ है। अच्छा ही है कि राजनीति का अपराधीकरण करने वालों के घिनौने चेहरे खुद ब खुद बेनकाब होते जा रहे हैं।
आखिर अतीक में क्या सुर्खाब के पर लगे थे जो समूचा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उसे वी.वी.आई.पी कवरेज देने को लंगर-लंगोट कस कर मैदान में उत्तर पड़ा? मीडिया जानता है कि उत्तर प्रदेश में गुंडों के प्रति योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस की नीति है। योगी के 6 वर्षों के शासनकाल में दस हजार से ज्यादा मुठभेड़ हुई हैं जिनमें 184 बदमाश ढेर हुए। आदित्य राणा खूंखार बदमाश तो अभी 12 अप्रैल 2023 को मारा गया। बिजनौर के स्योहारा-नूरपुर मार्ग पर ग्राम बुढ़नपुर के समीप एनकाउंटर हुआ। आदित्य राणा पर हत्या, अपहरण, रंगदारी के 43 मुकदमे थे। उसके गैंग में 48 सदस्य थे। आदित्य पर ढाई लाख रुपये का इनाम था।
राष्ट्रीय मीडिया आदित्य के एनकाउंटर पर बिल्कुल मौन रहा। उसे तो अतीक जैसे दुर्दान्त माफिया को महिमामंडित करना था। पूरे देश ने देखा है कि मीडिया वाले अतीक-अशरफ को घेर-घेर कर, उसके मुँह में माइक घुसेड़-घुसेड़कर बाइट ले रहे थे। मीडिया ने अतीक की गाड़ी पलटने की संभावना को आम चर्चा का विषय बना दिया। असलियत यह है कि मीडिया की इस बेवजह की सक्रियता के कारण दोनों बदमाशों की हत्या का मौका मिला। करोड़ों दर्शकों ने देखा कि अतीक-अशरफ को कॉल्विन अस्पताल लाने के समय पुलिसजनों को धकियाकर प्रेस फोटोग्राफर बाइट ले रहे थे। हत्यारों ने पत्रकारों का वेश बना कर ही हत्या को अंजाम दिया। टी.आर.पी. बढ़ाने के चक्कर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपने अधिकारों की सीमा खुद ही तय कर ली। यदि अतीक-अशरफ की हत्या संविधान-कानून की नाकामी व अपराध है तो मीडिया भी अपराधी है जिसने यह स्थिति पैदा की। माननीय उच्च न्यायालय निर्देश दे कि पेशी पर लाये जा रहे अपराधियों से मीडिया दूरी बना कर रहे। मीडिया केवल उनके अधिवक्ता या परिजनों की बाइट ले, मुजरिमों के मुंह में माइक न अड़ाए।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’