हाईकोर्ट की केजरीवाल को फटकार: निजी हित को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखा

उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दो लाख से अधिक छात्रों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने में विफलता के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाले दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को फटकार लगाई। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एसीजे) मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार केवल सत्ता के विनियोग में रुचि रखती है और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी के बावजूद इस्तीफा नहीं देकर अरविंद केजरीवाल ने व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित से ऊपर रखा है।

पीठ ने कहा एक अदालत के रूप में किताबें, वर्दी आदि का वितरण यह हमारा काम नहीं है। हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कोई अपने काम में विफल हो रहा है। आपका मुवक्किल सिर्फ सत्ता में रुचि रखता है। मुझे नहीं पता कि आप कितनी शक्ति चाहते हैं। समस्या यह है कि आप सत्ता हथियाने की कोशिश कर रहे हैं, इसीलिए आपको सत्ता नहीं मिल रही है।

दिल्ली सरकार के वकील शादान फरासत ने कहा कि उन्हें शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज से निर्देश मिले हैं कि एमसीडी की स्थायी समिति की अनुपस्थिति में एक उपयुक्त प्राधिकारी को अधिक शक्तियां सौंपने के लिए मुख्यमंत्री की सहमति की आवश्यकता होगी जो वर्तमान में हिरासत में हैं। इस दलील पर एसीजे मनमोहन ने जवाब दिया कि यह कोई बहाना नहीं हो सकता है और यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने खुद अरविंद केजरीवाल को सीएम पद से हटाने के निर्देश देने की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने कहा यह आपकी पसंद है कि आपने कहा है कि मुख्यमंत्री के हिरासत में होने के बावजूद सरकार जारी रहेगी। आप हमें उस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं जिस पर हम नहीं जाना चाहते थे। हमने जनहित याचिकाओं में कई बार ऐसा कहा है, लेकिन यह आपके प्रशासन का आह्वान है। यदि आप चाहते हैं कि हम इस पर टिप्पणी करें, तो हम पूरी सख्ती के साथ आएंगे।

यह है पूरा मामला
बता दें कि पीठ सोशल ज्यूरिस्ट नामक संगठन द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को पाठ्यपुस्तकें नहीं मिली हैं और नागरिक निकाय में गतिरोध के कारण वे टिन शेड में पढ़ रहे हैं। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान, एमसीडी आयुक्त कार्यवाही में शामिल हुए थे और पीठ को सूचित किया कि लगभग दो लाख छात्रों के पास कोई बैंक खाता, वर्दी नहीं है और इसलिए इन छात्रों को स्टेशनरी प्रतिपूर्ति नहीं की गई है।

उन्होंने कहा था कि नोटबुक, स्टेशनरी आइटम, वर्दी और स्कूल बैग के वितरण न होने का एक प्रमुख कारण ‘स्थायी समितियों का गठन न होना’ है और केवल स्थायी समिति के पास ही 5 करोड़ से अधिक मूल्य के अनुबंध देने की शक्ति और अधिकार क्षेत्र है। न्यायालय ने तब कहा था कि कोई शून्य नहीं हो सकता है और यदि किसी कारण से स्थायी समिति उपलब्ध नहीं है, तो वित्तीय शक्ति दिल्ली सरकार द्वारा एक उपयुक्त प्राधिकारी को सौंपी जानी चाहिए। खंडपीठ ने सरकार को दो कार्य दिवसों में आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

मंत्री सौरभ भारद्वाज के आचरण पर कोर्ट ने टिप्पणी की
आज की सुनवाई के दौरान एसीजे मनमोहन ने शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज के आचरण पर भी टिप्पणी की और कहा कि उन्होंने छात्रों की दुर्दशा पर आंखें मूंद ली हैं और घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि वह आदेश में सौरभ भारद्वाज का नाम भी डालेंगे। फरासत ने कहा कि एमसीडी के पास स्थायी समिति नहीं होने का कारण यह है कि एलजी ने अवैध रूप से एल्डरमेन की नियुक्ति की है और मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है। फरासत ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार के पास वैसे भी ज्यादा शक्तियां नहीं हैं।

दिल्ली सरकार को छात्रों के स्कूल न जाने की कोई चिंता नहीं: हाईकोर्ट
इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की कि दिल्ली सरकार को छात्रों के स्कूल न जाने या पाठ्यपुस्तकें न होने की कोई चिंता नहीं है। कोर्ट ने कहा आपकी रुचि केवल सत्ता में है। यह सत्ता का सर्वोच्च अहंकार है। कोर्ट ने सरकार को चेतावनी दी कि वह इसे कम करके न आंके। पीठ ने कहा हमारी हिम्मत को कम मत आंकिए। आप हमारी शक्ति को कम आंक रहे हैं… आप बच्चों को एक व्यापारिक बिंदु के रूप में रख रहे हैं, वे हमारे लिए एक व्यापारिक वस्तु नहीं हैं।

कोर्ट ने मामले पर फैसला रखा सुरक्षित
एसीजे मनमोहन ने कहा कि मामले में दिल्ली सरकार का रुख इस बात की स्वीकारोक्ति है कि दिल्ली में चीजें बहुत खराब हैं और एमसीडी के तहत लगभग हर प्रमुख पहलू ठप है। आखिरकार, उसने मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि फैसला सोमवार को सुनाया जाएगा।

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