बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड: डेढ़ दशक बाद दुष्ट दलन के लिए चली मित्र पुलिस की गोली

नवरात्र के पावन दिनों में शक्ति साधना के बीच पुलिस के शस्त्र भी दुष्ट दलन के लिए बाहर निकल आए। डेढ़ दशक बाद मित्र पुलिस की गोली ने एक बदमाश को ढेर कर दिया। इस समय अंतराल में पुलिस की गोलियां सिर्फ बदमाशों के घुटनों को भेदती रहीं, लेकिन सोमवार की रात मित्र पुलिस की गोली बदमाश के दिल तक जा पहुंची। 15 साल पहले एक फर्जी एनकाउंटर के बाद पुलिस के बंधे हाथों का बदमाशों ने भी खूब फायदा उठाया।

दरअसल, उत्तर प्रदेश से अलग होकर नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आए उत्तराखंड की पुलिसिंग भी उसी तेवर में थी। हरिद्वार, तराई के क्षेत्र में बदमाशों का बोलबाला रहता था। इनसे पुलिस ने सख्ती से निपटा। हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के अलावा राजधानी देहरादून में भी समय-समय पर बदमाश पुलिस की गोलियों का शिकार बने। इसका असर यह हुआ कि हरिद्वार में तेजी से पनप रहे माफिया राज पर अंकुश लगा। राजधानी देहरादून में भी 2008 में पेशेवर चेन स्नेचरों तक के एनकाउंटर हुए। इससे स्ट्रीट क्राइम पर बहुत हद तक अंकुश लगा। ये दौर नौ साल तक चला। इस बीच दिन आया तीन जुलाई 2009 का। इस दिन पुलिस ने गाजियाबाद के रहने वाले एक युवक रणवीर को बदमाश बताते हुए एनकाउंटर करने का दावा किया।

पुलिस की वाहवाही कुछ देर में बदनामी में तब्दील हो गई। मामले की सीआईडी और फिर सीबीआई जांच हुई। परतें उधड़ी तो सच्चाई सामने आई और रणवीर का एनकाउंटर फर्जी साबित हुआ। न्यायालय ने इस पूरे मामले में कुल 18 पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई। देश के इतिहास में अपनी तरह का पहला मामला था जब किसी प्रदेश की पुलिस के इतने लोगों को सजा सुनाई गई। बस यहीं से शुरूआत हुई उत्तराखंड पुलिस के गिरते इकबाल की। सालों तक पुलिस ने मुठभेड़ से दूरी बनाए रखी। राजधानी देहरादून में तो पुलिस की बंदूकें सिर्फ दिखावे के लिए ही टांगी जाती रहीं। पिछले करीब डेढ़ साल से हरिद्वार और देहरादून में एक के बाद एक कई मुठभेड़ हुईं, लेकिन गोलियां सिर्फ बदमाशों के पैरों को ही छू पाईं। अब सोमवार रात आखिरकार पुलिस की बंदूक से निकली गोली एक बदमाश को ढेर करने में सफल हुई।

कई अपराधियों ने ली उत्तराखंड में शरण
इन 15 सालों में देश में कई ऐसे बड़े कांड हुए जिनमें देहरादून, हरिद्वार, ऊधसिंहनगर आदि जिलों के नाम सामने आए। नाम सीधे तौर पर अपराध में शामिल होने में नहीं बल्कि अपराधियों की शरणस्थली बनने में इस्तेमाल हुआ। पंजाब में नाभा जेल तोड़ने के मामले से लेकर 2022 में गायक सिद्धू मूसेवाला के शूटरों तक ने उत्तराखंड में शरण ली। हालांकि, मूसेवाला के शूटर यहां इस घटना को अंजाम देने से पहले रुके थे। ऊधमसिंहनगर में पंजाब के कई बड़े अपराधियों ने शरण ली जिन्हें बाद में एसटीएफ ने पकड़ा। इसी तरह हरिद्वार के छोटे छोटे आश्रमों को भी बदमाशों ने अपराध कर छुपने के लिए आश्रयस्थल बनाया।

उत्तराखंड पुलिस कम से कम गोली नहीं मारेगी
दरअसल, यह बात सिर्फ चर्चाओं में ही नहीं थी। बल्कि समय-समय पर पकड़े गए बदमाशों ने पुलिस के सामने भी कबूल किया कि उन्हें पता था कि अगर पकड़े भी गए तो पुलिस कम से कम एनकाउंटर तो नहीं करेगी। इसी तोहमत को हटाने के लिए पुलिस लंबे समय से इंतजार कर रही थी। आखिरकार 15 साल बाद हरिद्वार के घटनाक्रम से यह अब बीते समय की बात हो गई।

15 सालों से उत्तराखंड में इस तरह का एनकाउंटर नहीं हुआ था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। पुलिस पर्यटकों और कानून का पालन करने वालों के लिए मित्र पुलिस है और पेशेवर अपराधियों के लिए काल पुलिस बनने से भी पीछे नहीं हटेगी। देवभूमि की शांति व्यवस्था में बाधा बनने वालों से पुलिस सख्ती से निपटेगी। उसमें हरिद्वार में हुआ यह एनकाउंटर नजीर बनेगा।
– अभिनव कुमार, पुलिस महानिदेशक

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