बालासोर ट्रेन हादसा: जीवित युवक को डाला मुर्दाघर में, पिता ने खोज लिया

ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण हादसे में 288 लोगों की जान चली गई। राज्य के विभिन्न अस्पतालों में सैकड़ों घायलों का उपचार चल रहा है। इनमें से कई गंभीर रूप से घायल भी शामिल हैं। इन सबके बीच, एक पिता के भरोसे ने बेटे को अस्थायी मुर्दाघर से जीवित बचा लिया। 

हावड़ा निवासी हेलाराम मलिक ने अपने बेटे बिस्वजीत (24 वर्षीय) को एक अस्थायी मुर्दाघर से जीवित निकालने के लिए 235 किलोमीटर की यात्रा की। उसे ट्रेन हादसे में मारे गए लोगों के शवों के साथ रखा गया था। बिस्वजीत को बहानागा हाईस्कूल के मुर्दाघर से बाहर निकालने के बाद हेलाराम बालासोर के अस्पताल पहुंचे। इसके बाद वह उसे कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल ले आए। बिस्वजीत के अंगों, हड्डी में कई चोटें आई हैं और उसे यहां एसएसकेएम अस्पताल की ट्रॉमा केयर यूनिट में उसकी दो सर्जरी की गईं। 

हेलाराम बताते हैं, “मैंने टीवी पर न्यूज देखी और फिर मैंने महसूस किया कि मुझे बिस्वजीत को फोन कर पूछना चाहिए कि क्या वह ठीक है। उसने शुरू में फोन नहीं उठाया। दोबारा जब फोन किया तो दूसरी तरफ से कम आवाज सुनाई दी। उसने कहा कि वह जिंदा है। वह दर्द से कराह रहा था।” हेलाराम हावड़ा में किराना की दुकान चलाते हैं। 

उसी रात (2 जून) वह और उनके बहनोई दीपक दास एंबुलेंस से बालासोर के लिए रवाना हुए। वह बताते हैं, “हम बिस्वजीत को ढूंढ नहीं पा रहे थे क्योंकि उसके मोबाइल से कॉल का कोई जवाब नहीं मिल रहा था। हम अलग-अलग अस्पताल गए लेकिन बिस्वजीत कहीं नहीं था। इसके बाद हम बहानागा हाईस्कूल के एक अस्थायी मुर्दाघर गए। शुरू में हमें अंदर घुसने नहीं दिया गया। इस बीच, कुछ लोगों के बीच विवाद हो गया और उसके बाद हंगामा शुरू हो गया। अचानक ही मैंने एक हाथ हिलते देखा और पता चला कि यह तो मेरे बेटे का ही है। वह जीवित था।” 

“बिस्वजीत कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। एक पल की देरी किए बिना मैं अपने बेटे को बालासोर अस्पताल ले गया, जहां उसे कुछ इंजेक्शन दिए गए। फिर कटक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भेज दिया गया।” वह बताते हैं, “उसके अंगों में कई फ्रैक्चर थे और वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। मैंने वहां एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर किए और बिस्वजीत को सोमवार सुबह एसएसकेएम अस्पताल की ट्रॉमा केयर यूनिट में लाया।” यह पूछे जाने पर कि लोगों ने उन्हें ‘मृत’ क्यों समझा, एसएसकेएम अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा, हो सकता है कि बिस्वजीत ‘सस्पेंडेड एनिमेशन’ में चले गए हों, जिससे लोगों को लगा कि वह मर चुका है। 

सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बिस्वजीत और एसएसकेएम अस्पताल में इलाज करा रहे घायलों से मुलाकात की। हेलाराम कहते हैं, “मैं अपने बेटे को वापस देने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा। मैं बता नहीं सकता कि जब मैंने सुना कि बिस्वजीत मर चुका है तो मेरे दिमाग में क्या चल रहा था। मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि वह अब नहीं रहा और उसकी तलाश करता रहा।” 

वहीं, बिस्वीजीत कहते हैं, “मुझे लगता है कि एक नया जीवन मिला है। मैं इसका श्रेय अपने पिता को देता हूं। वह मेरे लिए भगवान हैं और उनकी वजह से मुझे यह जीवन फिर से वापस मिला है।” बिस्वजीत ने अस्पताल के बिस्तर से कहा, “बाबा मेरे लिए सबकुछ हैं।” बिस्वजीत कोरोमंडल एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था। यह ट्रेन 2 जून को शाम 7 बजे एक खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे इसके अधिकांश डिब्बे पटरी से उतर गए। कोरोमंडल के कुछ डिब्बे बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस के अंतिम कुछ डिब्बों पर गिर गए जो उसी समय वहां से गुजर रही थी।  

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