सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) और उससे जुड़ी कंपनियों में कथित आर्थिक अनियमितताओं और बैंक धोखाधड़ी की अदालत-निगरानी में जांच की मांग पर केंद्र सरकार और संबंधित एजेंसियों से जवाब तलब किया है। यह याचिका केंद्र सरकार के पूर्व सचिव ई.ए.एस. सरमा ने दायर की है, जिसमें समूह पर धन के दुरुपयोग, अकाउंट्स में हेराफेरी और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र, ईडी, सीबीआई और कारोबारी अनिल अंबानी को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि यह मामला देश के इतिहास के सबसे बड़े कॉर्पोरेट फ्रॉड में से एक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि कथित घोटाला 2007-08 से जारी है, जबकि एफआईआर 2025 में दर्ज हुई।

याचिका में क्या कहा गया है?

सरमा की याचिका में दावा है कि सीबीआई और ईडी की मौजूदा कार्रवाई कथित अनियमितताओं के केवल एक छोटे हिस्से को ही कवर करती है, जबकि स्वतंत्र फोरेंसिक ऑडिट में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ी के संकेत साफ दिखते हैं। आरोप लगाया गया है कि एजेंसियों ने अब तक बैंक अधिकारियों और नियामक संस्थाओं की भूमिका की जांच नहीं की, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही धन के दुरुपयोग के संकेतों को रिकॉर्ड कर चुका है।

लोन और फोरेंसिक ऑडिट में क्या सामने आया?

आरोप के मुताबिक, आरकॉम, रिलायंस इंफ्राटेल और रिलायंस टेलीकॉम ने 2013 से 2017 के बीच एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह से 31,580 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। एसबीआई की ओर से कराए गए फोरेंसिक ऑडिट में कई गंभीर अनियमितताएं मिलीं—

  • बंद घोषित खातों से भी लेनदेन,

  • वित्तीय विवरणों में संभावित हेराफेरी,

  • कर्ज की राशि को घुमाने के लिए कथित रूप से फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल।

कैसे हुई कथित हेराफेरी?

याचिका में आरोप है कि नेटिजन इंजीनियरिंग और कुंज बिहारी डेवलपर्स जैसी फर्जी संस्थाओं के जरिए धन की आवाजाही की गई और फर्जी प्राथमिकता-शेयर संरचना का उपयोग कर देनदारियों को छुपाया गया। इससे बैंकों को करीब 1,800 करोड़ रुपये का नुकसान होने का दावा किया गया है।

बैंक अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल

याचिकाकर्ता ने एसबीआई पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। आरोप है कि अक्टूबर 2020 में मिले फोरेंसिक ऑडिट को लेकर बैंक ने कोई तत्काल कदम नहीं उठाया और पांच साल बाद—अगस्त 2025 में—एफआईआर दर्ज कराई। याचिका में इसे “संस्थागत मिलीभगत” की तरह बताया गया है और मांग की गई है कि बैंक अधिकारियों का आचरण भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांचा जाए।