गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले दस वर्षों में भारत की घरेलू बचत से वित्तीय परिसंपत्तियों में लगभग 9.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रवाह दर्ज किया जा सकता है। अनुमान है कि इस अवधि में घरेलू वित्तीय बचत औसतन सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब 13 प्रतिशत रहेगी, जबकि पिछले एक दशक में यह औसत 11.6 प्रतिशत रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि परिवारों की प्राथमिकताएं धीरे-धीरे भौतिक संपत्तियों से हटकर वित्तीय परिसंपत्तियों की ओर बढ़ रही हैं। अनुमान है कि कुल प्रवाह में से 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक बीमा, पेंशन और रिटायरमेंट फंड जैसे दीर्घकालिक बचत उत्पादों में निवेश होगा। इसके अलावा, इक्विटी और म्यूचुअल फंड में लगभग 0.8 ट्रिलियन डॉलर और बैंक जमाओं में करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर आने की उम्मीद है।

रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू बचत का यह वित्तीयकरण भारतीय अर्थव्यवस्था पर तीन बड़े प्रभाव डालेगा। पहला, यह पूंजीगत व्यय चक्र के लिए स्थिर वित्तीय आधार सुनिश्चित करेगा, जिससे चालू खाता घाटा नहीं बढ़ेगा। दूसरा, लंबी अवधि के बॉन्ड बाजारों को मजबूती मिलेगी और सॉवरेन व कॉर्पोरेट बॉन्ड के जरिए बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण में आसानी होगी। तीसरा, पूंजी बाजारों में खुदरा निवेशकों की भागीदारी और पेशेवर धन प्रबंधन सेवाओं की मांग बढ़ेगी।

गोल्डमैन सैक्स ने कहा कि परिवार किस प्रकार अपनी बचत को भौतिक और वित्तीय संपत्तियों में विभाजित करते हैं, यह उनकी आय, ब्याज दरों, मुद्रास्फीति, जोखिम उठाने की प्रवृत्ति और वित्तीय बाजारों तक पहुंच जैसे कारकों पर निर्भर करता है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में परिवार पेंशन फंड, पूंजी बाजार और बीमा उत्पादों में अधिक निवेश कर रहे हैं, जबकि उभरते बाजारों में अभी भी बचत का बड़ा हिस्सा रियल एस्टेट और सोने जैसी संपत्तियों में जाता है। यही कारण है कि भारत में वित्तीय संपत्तियों की ओर रुझान और गहराने की संभावना है।