कर्मचारियों के लिए राहत भरी खबर है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) अब अपने नियमों में अहम संशोधन करने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक, आने वाले महीनों में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में अनिवार्य सदस्यता के लिए वेतन सीमा को मौजूदा 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये प्रति माह किया जा सकता है। इसका लाभ देशभर के लाखों कर्मचारियों को मिलेगा।

वर्तमान नियमों के तहत, जिन कर्मचारियों का मूल वेतन 15 हजार रुपये से अधिक है, उन्हें इन दोनों योजनाओं से बाहर रहने की अनुमति होती है। इस वजह से नियोक्ताओं के पास ऐसे कर्मचारियों को ईपीएफ या ईपीएस में शामिल करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। माना जा रहा है कि ईपीएफओ का केंद्रीय न्यासी बोर्ड दिसंबर या जनवरी में होने वाली अपनी अगली बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा करेगा, जिसके बाद अंतिम मंजूरी दी जा सकती है।

एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों को होगा फायदा

श्रम मंत्रालय के आंतरिक आकलन के अनुसार, वेतन सीमा बढ़ने से एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ मिलेगा। श्रमिक संघ लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि वेतन सीमा को वास्तविक वेतन स्तरों के अनुरूप बढ़ाया जाए, क्योंकि आज अधिकांश शहरों में निम्न और मध्यम कुशल श्रमिकों का वेतन 15 हजार रुपये से अधिक है।

क्या हैं मौजूदा नियम?

वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को 12-12 प्रतिशत अंशदान देना अनिवार्य है। कर्मचारी का पूरा 12 प्रतिशत हिस्सा ईपीएफ में जाता है, जबकि नियोक्ता का 12 प्रतिशत ईपीएफ (3.67%) और ईपीएस (8.33%) के बीच विभाजित होता है।
अधिकारियों के अनुसार, वेतन सीमा में बढ़ोतरी से न केवल ईपीएफ और ईपीएस कोष में वृद्धि होगी, बल्कि भविष्य में कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन और ब्याज लाभ में भी इजाफा होगा। वर्तमान में ईपीएफओ का कुल कोष लगभग 26 लाख करोड़ रुपये है, जबकि सक्रिय सदस्य 7.6 करोड़ से अधिक हैं।

लंबी अवधि की सुरक्षा की दिशा में कदम

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रस्ताव भारत के कार्यबल के बड़े हिस्से को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल कर्मचारियों को रिटायरमेंट लाभ और दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता मिलेगी, बल्कि देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली भी मजबूत होगी।