भारतीय शेयर बाजार की मौजूदा चाल पर विदेशी निवेशकों की भूमिका अहम होती है। हाल के दिनों में फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) का रुख बाजार के प्रति नकारात्मक रहा है, जिसका असर बाजार की दिशा पर भी साफ नजर आ रहा है। पिछले 9 कारोबारी सत्रों में एफपीआई ने करीब 27,000 करोड़ रुपये की निकासी की है। अकेले गुरुवार को ही उन्होंने 5,600 करोड़ रुपये की पूंजी बाजार से बाहर निकाली। आइए समझते हैं कि आखिर विदेशी निवेशक फिलहाल भारतीय बाजार से दूरी क्यों बना रहे हैं।
कमजोर तिमाही नतीजे बने बड़ा कारण
अप्रैल से जून तिमाही के परिणामों ने विदेशी निवेशकों की चिंता बढ़ाई है। इस दौरान कई कंपनियों के प्रदर्शन उम्मीद से कमजोर रहे। खासकर आईटी सेक्टर में एक महीने में करीब 10% की गिरावट आई, जबकि बैंकिंग सेक्टर भी स्थिर नजर आया। देश के प्रमुख 9 निजी बैंकों की ग्रोथ मात्र 2.7% रही, जो मांग में सुस्ती और धीमी आर्थिक गति को दर्शाती है। ऐसे में निवेशकों का भरोसा डगमगाया है।
डॉलर की मजबूती ने बढ़ाई निकासी
इस समय वैश्विक बाजार में डॉलर इंडेक्स में मजबूती देखी जा रही है, जो इस हफ्ते 2.5% चढ़कर 100 के पार पहुंच गया है। यह दो महीने का उच्चतम स्तर है। डॉलर की मजबूती का मतलब है कि विदेशी निवेशक अपना पैसा अमेरिका या अन्य मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की ओर स्थानांतरित कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय हालात से भी प्रभावित
अमेरिका की टैरिफ नीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर बढ़ती अनिश्चितता भी निवेशकों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका और रूस के साथ संतुलन बनाए रखने की भारत की नीति पर वैश्विक संदेह बढ़ा है, जिससे भारत का “सुरक्षित निवेश स्थल” वाला दर्जा प्रभावित हो सकता है।
बिकवाली की रणनीति में बदलाव
एफपीआई ने इंडेक्स फ्यूचर्स में शॉर्ट पोजीशन को 90% तक बढ़ा दिया है, जो जनवरी 2024 के 89% के पिछले रिकॉर्ड से ज्यादा है। अगस्त डेरिवेटिव सीरीज की शुरुआत में लॉन्ग-टू-शॉर्ट रेशियो 0.11 तक गिर गया है, जो मार्च 2023 के बाद सबसे निचला स्तर है। इसका अर्थ है कि निवेशक बाजार में और गिरावट की संभावना देख रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय क्या कहती है?
मार्केट विशेषज्ञ सुनील सुब्रमण्यम के अनुसार, एफपीआई की बिकवाली के पीछे कई आर्थिक कारण हैं। उन्हें पहले ही आशंका थी कि भारत को ट्रेड डील से विशेष लाभ नहीं मिलेगा। दूसरी ओर, चीन का बाजार फिलहाल आकर्षक वैल्यूएशन और संभावित ग्रोथ के कारण निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। साथ ही, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बनाए रखने से डॉलर में निवेश का रुझान भी बना हुआ है। हालांकि, सुब्रमण्यम मानते हैं कि यह गिरावट घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) के लिए एक अवसर बन सकती है, जिनके पास निवेश के लिए पर्याप्त नकद संसाधन उपलब्ध हैं।
क्या बाजार में सुधार की उम्मीद है?
इतिहास बताता है कि जब एफपीआई का लॉन्ग-टू-शॉर्ट अनुपात 0.15 से नीचे जाता है, तो अगली डेरिवेटिव सीरीज में निफ्टी में औसतन 7% तक की तेजी देखी जाती है। इसका मतलब यह हो सकता है कि विदेशी निवेशक आने वाले समय में शॉर्ट पोजीशन को कवर करने के लिए फिर से खरीदारी कर सकते हैं। इसके साथ ही जैसे ही फेड ब्याज दरों में कटौती की ओर बढ़ेगा, एफपीआई की वापसी की संभावना भी बढ़ जाएगी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की दीर्घकालिक विकास क्षमता अभी भी निवेशकों को आकर्षित करने में सक्षम है।