केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने व्हाइट हाउस के पूर्व व्यापार सलाहकार पीटर नवारो की ‘लॉन्ड्रोमैट’ वाली टिप्पणी को पूरी तरह खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूसी तेल खरीदते समय किसी भी अंतरराष्ट्रीय नियम का उल्लंघन नहीं किया। पुरी के मुताबिक, भारत की ऊर्जा नीति ने वैश्विक बाजार में स्थिरता बनाए रखने और तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘लॉन्ड्रोमैट’ शब्द का आशय संदिग्ध गतिविधियों को वैध रूप देने की प्रक्रिया से होता है।

पुरी ने एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित लेख में लिखा कि भारत ने रूसी तेल आयात से कोई अनुचित लाभ नहीं उठाया। उन्होंने बताया कि फरवरी 2022 में यूक्रेन संघर्ष शुरू होने से पहले ही भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातक था और युद्ध के बाद भी न तो निर्यात में कोई बड़ा इज़ाफा हुआ और न ही मुनाफे में। पुरी ने आलोचकों पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत को रूसी तेल का ‘लॉन्ड्रोमैट’ बताना पूरी तरह गलत है।

यूक्रेन युद्ध से पहले भारत का रूसी तेल आयात मात्र एक फीसदी था, जो पश्चिमी देशों की पाबंदियों के बाद भारी छूट मिलने पर बढ़कर लगभग 40 फीसदी तक पहुंच गया। इससे भारत को सस्ती ऊर्जा मिली। हालांकि, ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका ने भारत पर आरोप लगाया था कि वह रूसी तेल को रिफाइन कर यूरोप में बेचकर लाभ कमा रहा है।

हाल में पीटर नवारो ने सोशल मीडिया पोस्ट में यूक्रेन युद्ध को 'मोदी का युद्ध' बताते हुए भारत पर रूस की 'युद्ध मशीन' को सहयोग देने का आरोप लगाया और प्रधानमंत्री मोदी की भगवा परिधान में तस्वीर साझा की।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पुरी ने कहा कि रूस से तेल आयात पर ईरान और वेनेजुएला जैसे प्रतिबंध लागू नहीं हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जी-7 और यूरोपीय संघ ने केवल मूल्य सीमा की व्यवस्था बनाई है ताकि आपूर्ति बनी रहे और रूस की आमदनी सीमित हो। भारत ने हर नियम और प्रक्रिया का पालन किया है।

पुरी ने जोर देकर कहा कि भारत का हर लेन-देन पूरी तरह वैध है और केवल कानूनी माध्यमों—जैसे मान्यता प्राप्त जहाजरानी, बीमा और प्रमाणित व्यापारिक चैनलों—के जरिए ही हुआ है। भारत ने नियमों का पालन करते हुए न सिर्फ वैश्विक आपूर्ति बनाए रखी बल्कि कीमतों को भी संतुलित किया।

उन्होंने ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, तो कच्चे तेल की कीमत 90 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। चूंकि खरीदार सीमित हैं, भारत के हटने से वैश्विक आपूर्ति पर असर पड़ेगा और महंगाई बढ़ेगी।

पुरी ने बताया कि दशकों से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातक रहा है और उसके रिफाइनर विभिन्न देशों के तेल को प्रोसेस करते हैं। यूरोप ने रूस से तेल पर पाबंदी लगाने के बाद खुद भारत से ईंधन आयात शुरू किया। इसलिए मुनाफाखोरी का सवाल ही पैदा नहीं होता।

उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध के बाद वैश्विक कीमतों में आई तेजी के बीच भारत ने अपने नागरिकों को राहत देने के लिए कई कदम उठाए। सरकारी तेल कंपनियों ने डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर तक का घाटा सहा, केंद्र और राज्यों ने टैक्स घटाए और यह नियम लागू किया गया कि रिफाइनर को कम से कम 50% पेट्रोल और 30% डीजल घरेलू बाजार में उपलब्ध कराना होगा।

पुरी के अनुसार, इन उपायों से सरकार को भारी वित्तीय बोझ उठाना पड़ा, लेकिन देश में ईंधन की आपूर्ति बाधित नहीं हुई और जनता को स्थिर दाम पर पेट्रोल-डीजल मिलता रहा। उन्होंने कहा कि रूस जैसे बड़े उत्पादक को पूरी तरह नजरअंदाज करना संभव नहीं है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए संभावित 200 डॉलर प्रति बैरल की स्थिति से दुनिया को बचाने में अहम योगदान दिया है।