बाबा रामदेव को कोर्ट की नसीहत !

23 नवंबर: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह व जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने बाबा रामदेव को कड़ी चेतावनी दी है कि पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक और झूठे विज्ञापन बन्द ‌नहीं किये गये तो कोर्ट उनके विरुद्ध सख्त कदम उठायेगी। उनके आयु‌र्वेद ‌के उत्पादों पर एक-एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा है कि पतंजलि को झूठे विज्ञापन न देने के साथ ही आयुर्वेद के संबंध में गलत वक्तव्य या प्रेस विज्ञप्तियां भी नहीं जारी करनी चाहियें। पीठ ने केन्द्र सरकार से भी कहा है कि वह इस समस्या का समाधान करे।

निराधार तथा भ्रामक विज्ञापनों से आयुर्वेद की औषधियों का प्रचार करना तथा एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की निन्दा करना योग गुरु का व्यावसायिक हथकंडा हो सकता है। बाबा जी ने जिस प्रकार से एलोपैथी का मजाक उड़ाया, वह अशोभनीय या मरीजों के हितों के विरुद्ध माना जा सकता है, इस लिए‌ गलत-भ्रामक विज्ञापन ‌या प्रचार रुकना ही चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी उचित है किन्तु यहां कुछ बिंदु उभरते हैं। क्या कोर्ट ने पतंजलि के उन आयुर्वेदिक उत्पादों या औषधियों का वैज्ञानिक तथा औषधीय परीक्षण करा लिया है जिनको कोर्ट गलत बताता है? क्या पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियां रोगों का इलाज करने को सक्षम नहीं है, बिल्कुल कबाड़ा हैं, सिर्फ झूठा प्रचार करके पतंजलि के खजाने को बढ़ा रहे हैं ? विज्ञापित उत्पादों को बेकार या हानिकारक सिद्ध होने से पहले उन पर प्रतिकूल टिप्पणी का क्या औचित्य है?

यह भी उल्लेखनीय है कि पतंजलि के अलावा वैद्यनाथ, डाबर, धूततापेश्वर आदि कम्पनियां भी आयुर्वेदिक औषधियों का प्रचार करती आई हैं लेकिन उन्होंने योग गुरु की भांति एलोपैथी को नाकारा सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया, केवल अपने ही प्रोडक्ट्स का प्रचार करते हैं। यह भी सच्चाई है कि 90-95 प्रतिशत मरीज़ एलोपैथी चिकित्सा कराते हैं क्यूं कि उन्हें इस चिकित्सा से तत्काल राहत मिलती है। भले ही आदिकाल में सुश्रुत सिद्धहस्त शल्य चिकित्सक रहे होंगे किन्तु आज की आधुनिक सर्जरी के बिना मरीज़ का इलाज होना संभव नहीं।

सुप्रीम कोर्ट अपनी मर्जी से किसी भी मामले पर स्वतः संज्ञान ले लेती है। आज पूरे देश में एलोपैथी की दवाइयां बनाने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियां राष्ट्रीय अखबारों में अपनी औषधियों की प्रशंसा में पूरे-पूरे पृष्ठों के विज्ञापन छपवाती हैं। एलोपैथी की औषधियों से क्या गारंटी से रोग दूर हो जाते हैं अथवा क्या वे एक निश्चित समय तक क्षणिक रूप से कारगर हैं ?

क्या ऐलोपैथी में रोगों का स्थायी इलाज है? क्या जुखाम जैसे मामूली रोग और शुगर, रक्तचाप, गठिया, सर्वाइकल आदि रोगों का एलोपैथी के पास परिपूर्ण इलाज है? इस पर सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान ले क्योंकि यह करोडों मरीजों से जुड़ा मामला है।

कानूनन कोई भी चिकित्सक स्वयं की चिकित्सा को गारंटीशुदा दिखाकर विज्ञापन प्रकाशित नहीं कर सकता किन्तु न केवल वैद्य-हकीम बल्कि एलोपैथी के डॉक्टर भी अपने को कुशल चिकित्सक सिद्ध करते हुए बड़े-बड़े विज्ञापन अखबारों के पहले पन्ने पर छपवाते हैं।

मुजफ्फरनगर के एक झोलाछाप हकीम जी ने राष्ट्रीय अखबारों में गारंटी वाले विज्ञापन छपवाकर करोड़ों रुपये बटोरे और खुदा को प्यारे हो गए। एक अन्य झोलाछाप खुद को गारंटी वाला डॉक्टर बता कर करोड़ों रुपये सालाना के विज्ञापन अखबारों में छपवाते हैं और अरबों रुपये कमाते हैं। इनके अलावा और भी कमाऊ पिता-पुत्र हैं जिनका धंधा सिर्फ विज्ञापनों के सहारे चल रहा है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी या सरकार के किसी जिम्मेदार ऑफिसर अथवा न्यायपालिका ने इस और स्वतः संज्ञान क्यूँ नहीं लिया?

दिल्ली में हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे नांगलोई का एक झोलाछाप करोड़ों के भ्रामक विज्ञापन छपवाकर मरीजों को आकर्षित करता है।

राजनीतिक दलों के नेता मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों के तो अपने एजेंडे हैं, चाहे वे किसी भी दल के हों, लेकिन न्यायपालिका तो लोकतंत्र का एक प्रमुख स्तम्भ है। अभी भारत में बनी एलोपैथी की स्तरहीन औषधियों से विदेशों में कई मरीज बे-मौत मर गए। खूब हो-हल्ला मचा। यह आवाज न्यायपालिका को सुनाई नहीं पड़ी। इनके स्वतः संज्ञान का फार्मूला कहा चला गया? खराब एलोपैथिक दवाइयों के निर्यात से नाक तो भारत की कटती है, कार्यपालिका या न्यायपालिका की नहीं?

बाबा रामदेव के बड़बोलेपन पर निर्णय देने का अधिकार न्यायपालिका को है, लेकिन उससे अपेक्षा की जाती है कि एलोपैथी की महत्ता को बचाने के चक्कर में पूरी आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली व औषधियों और पुरातन-काल से चली आ रही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर प्रश्नचिन्ह न लगायें।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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