दिल्ली विश्वविद्यालय:छात्रों की फीस में 900रु. की बढ़ोतरी की सम्भावना

दिल्ली विश्वविद्यालय ने छात्रों से लिए जाने वाले वार्षिक विश्वविद्यालय विकास शुल्क को बढ़ाने का फैसला किया है। विश्वविद्यालय की तरफ से यूजीसी द्वारा पूंजीगत अनुदान में कमी के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है।

विश्वविद्यालय विकास शुल्क (यूडीएफ) छात्रों से ली जाने वाली वार्षिक फीस का एक अहम हिस्सा है। डीयू के शिक्षकों के एक वर्ग ने बताया है कि विवि के इस कदम से छात्रों की फीस में भारी बढ़ोतरी हो जाएगी। विश्वविद्यालय ने नए भवनों के निर्माण और प्रयोगशाला उपकरणों की खरीद जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिए धन के आवंटन पर विचार करने के लिए विश्वविद्यालय विकास निधि समिति का गठन किया था, जिसे शैक्षणिक सत्र 2012-13 में लागू किया गया। वर्तमान में विश्वविद्यालय को यूडीएफ योगदान के रूप में प्रति छात्र हर वर्ष 600 रुपये मिल रहे हैं। 

यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) और आईसीटी (सूचना और संचार) की ओर से सक्षम बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए आत्मनिर्भरता और पूंजीगत अनुदान में कमी के कारण विवि ने यूडीएफ बढ़ाने का फैसला किया है। इससे छात्रों की फीस बढ़कर करीब 900 रुपया होने का अनुमान है। विश्वविद्यालय विकास निधि समिति की सिफारिशों पर कुछ सदस्यों की असहमति के बावजूद 17 दिसंबर को विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक में फीस वृद्धि के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया।

डीयू के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर पीसी जोशी और रजिस्ट्रार विकास गुप्ता की समिति ने बताया कि यूजीसी पिछले तीन-चार वर्षों से प्रयोगशाला व अन्य उपकरणों के लिए विश्वविद्यालय को पर्याप्त पूंजी अनुदान जारी नहीं की है और चालू वित्तीय वर्ष में केवल 1.25 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है। इतने कम पैसे में विवि प्रयोगशाला का कोई भी सामान खरीदने में सक्षम नहीं है। 

समिति ने इन सभी बातों पर व्यापक विचार विमर्श करने के बाद विवि की सभी विभागों की प्रयोगशालाओं में उपकरणों की खरीद के लिए 52 करोड़ रुपयों की राशि आवंटन की मंजूरी प्रदान की है। इस धन के आवंटन के लिए कुलपति से एक समिति गठित करने का अनुरोध किया गया है।

कार्यकारी परिषद की सदस्य सीमा दास ने बताया कि पहले छात्रों द्वारा एकत्र यूडीएफ को विश्वविद्यालय द्वारा आपातकालीन कोष माना जाता था। लेकिन अब विवि इस कोष का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे में करने की तैयारी कर रहा है, विवि के इस फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए फीस भरने में मुश्किलें आएंगी। राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और कार्यकारी परिषद के पूर्व सदस्य राजेश झा ने भी छात्रों की फीस बढ़ने के फैसले का समर्थन नहीं किया है।

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव आभा देव हबीब ने भी प्रोफेसर झा से सहमति जताई है। उन्होंने कहा है कि कोविड काल में कोई भी संस्थान फीस नहीं बढ़ा रहा। छात्रों की फीस में भले ही न्यूनतम वृद्धि हो, लेकिन यह सही नहीं है।

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