दिल्ली में डॉक्टरों की हड़ताल से मरीजों को भारी परेशानी, इधर-उधर भटकने को मजबूर हुए लोग

डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से मरीजों को उपचार नहीं मिल पा रहा है लेकिन ओपीडी से अधिक परेशानी ऑपरेशन कराने वालों की है। सरकारी अस्पतालों में लंबी वेटिंग पहले से मौजूद है। ऐसे में बीते कुछ दिनों में ऑपरेशन बंद होने की वजह से मरीजों को दोबारा से तारीख लेना बड़ी मुसीबत लग रहा है। मरीजों का कहना है कि अब कम से कम तीन महीने उन्हें इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि अस्पताल में फिर से तारीख लेने में बहुत समय लगता है। 

जानकारी के अनुसार 29 नवंबर से ही सफदरजंग, आरएमएल और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। इनकी वजह से अब तक करीब पांच हजार से भी अधिक मरीजों को वापस लौटाया जा चुका है। यह सभी मरीज किसी न किसी ऑपरेशन कराने के लिए यहां पहुंचे थे। जब भी हड़ताल खत्म होती है तो इन मरीजों को फिर से आकर नई तारीख लेनी होगी जिसमें लंबा वक्त लग सकता है। 

वहीं बुधवार को यह तीनों अस्पताल लगभग खाली मिले हैं। यहां एक दो मरीज को छोड़ बाकी सभी वार्ड, ओपीडी और स्ट्रेचर इत्यादि खाली पड़े हैं। ज्यादातर मरीजों ने अस्पताल छोड़ दिए हैं। सफदरजंग में हड़ताल की वजह से मरीजों को एम्स का सहारा भी नहीं मिला। एम्स पहुंच रहे मरीजों को आपातकालीन विभाग से बिस्तर न होने का हवाला देकर लौटा दिया गया। वरिष्ठ डॉक्टरों के अनुसार बगैर रेजीडेंट के ऑपरेशन नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि इस दौरान एक बड़ी टीम कार्य करती है। अगर रेजीडेंट साथ न हो तो इससे ऑपरेशन में देरी के अलावा काफी तरह की चुनौतियां भी आती हैं। 

बहरहाल डॉक्टरों की हड़ताल से अब दिल्ली कैट्स एंबुलेंस के कर्मचारी भी काफी परेशान हो चुके हैं। एक मरीज को कभी यहां तो कभी किसी और अस्पताल का चक्कर लगाने के साथ तीन से चार घंटे तक भर्ती नहीं किया जा रहा है। एंबुलेंस यूनियन के विनोद बताते हैं कि अब जिन अस्पतालों में हड़ताल चल रही है वहां की कॉल आने पर वह नहीं ले रहे हैं क्योंकि यहां इलाज मिल नहीं रहा है और अस्पताल मरीज ले नहीं रहे। इसके चलते एंबुलेंस को घंटों एक ही मरीज में व्यस्त रहना पड़ता है। 

इनकी तो सरकार सुनेगी, हमारी कौन सुनेगा साहब?
साहब मैं रीता हूं, पटपड़गंज से अपनी बहन को लेकर यहां आई हूं। तीन दिन से बुखार है और बता रहे हैं कि प्लेटलेट्स भी कम हैं। वहां डॉक्टर ने कहा तो हम इसे लेकर आरएमएल आ गए लेकिन आज दो दिन हो गए। यहां सुबह झाडू लगाने वाला आता है और चला जाता है फिर दिन भर कोई नहीं रहता। बड़े डॉक्टर भी आते हैं। यह तक बताने वाला नहीं है कोई कि मरीज को हम कहां ले जाएं? इनकी तो सरकार सुन भी लेगी, लेकिन हमारी कौन सुनेगा साहब। मेरी बहन को अगर कुछ हो जाता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई भी नहीं करेगी। 

रीता बीते सोमवार से अपनी बहन के साथ आरएमएल अस्पताल के आपाकालीन वार्ड में हैं और इनका कहना है कि यहां कोई भी वरिष्ठ डॉक्टर इलाज के लिए नहीं आया। जबकि वरिष्ठ डॉक्टरों को उपचार जारी रखने के निर्देश दिए गए थे लेकिन हड़ताल के चलते यह भी ड्यूटी से गायब हैं। 

वहीं राव तुला राम अस्पताल से रैफर होकर सफदरजंग अस्पताल पहुंचे नंगली निवासी परशुराम ने बताया कि उनकी पत्नी अचानक बेहोश हो गई थी इसलिए वे यहां लेकर आए। घर के पास एकअस्पताल था उसने बताया कि कोई खून का थक्का जम गया है। अब समझ नहीं आ रहा कि इसको इलाज के लिए कहां ले जाऊं? 

 इसी बीच सफदरजंग अस्पताल में भर्ती मरीज सुभाष को उसके परिजन दूसरे अस्पताल लेकर चले गए। सुभाष की हालत काफी गंभीर है और उसे ऑक्सीजन भी लगी हुई है। बेसुध सुभाष को देखने वाला सफदरजंग अस्पताल में कोई नहीं है। उनके परिजनों का कहना है कि यहां मरीज को रखा तो वह मर जाएगा। वहीं जैतपुर निवासी जितेंद्र का कहना है कि डॉक्टर मरीज को देखते ही मुंह पलटा ले रहे हैं। जूनियर हड़ताल पर हैं लेकिन यहां तक सीनियर तक काम छोड़ कर चले गए हैं। कोई सुनने वाला ही नहीं है। 

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