सरूरपुर (मेरठ) पुलिस ने 17 अगस्त को ग्राम गोटका निवासी सेना के जवान कपिल पंवार को भूनी टोल प्लाजा पर बाउंसर्स (बाहुबली कर्मी) द्वारा खम्भे से बांध कर पीटे जाने की बर्बर घटना के बाद मुख्य आरोपी रवि को गिरफ्तार कर लिया है। 7 बदमाश पहले ही जेल भेजे जा चुके हैं।
फौजी कपिल पंवार को टोल प्लाजा के गुण्डे कर्मचारियों ने खंभे से बांध कर जिस बर्बरता से पीटा, उससे पूरे देश में रोष है। निःसंदेह बाहुबली टोल कर्मियों को कानून का भय नहीं था, होता तो वे ऐसी दुष्टतापूर्ण हरकत न करते।
टोल कर्मियों पर अक्सर वाहन चालकों/मालिकों के साथ अभद्रता करने के आरोप लगते हैं। मुजफ्फरनगर से मेरठ, बिजनौर, बागपत, करनाल, सहारनपुर जाने-आने वाले वाहन वालों का विवाद होता रहता है। रोहाना, छपार, मुझेड़ा, आदि टोल प्लाजा पर या तो कर्मचारी अभद्रता और मारपीट करते हैं या फिर बिना टोल टैक्स दिये वाहनों को ले जाने की जिद पर अड़े लोग और कथित नेता या खुद को वीआईपी मानने वाले चालक टोलकर्मियों को पीटने से गुरेज नहीं करते। सिवाया टोल प्लाजा पर तो महिला टोल कर्मियों को पीटा गया। वीडियो मौजूद हैं। अभी 17 अगस्त को मुझेड़ा टोल प्लाजा पर वाहन में बैठे युवकों ने टोल प्लाजा के शिफ्ट इंचार्ज उमा शंकर को पीटकर घायल कर दिया। दादागीरी दिखाने वाले वाहन चालक टोल कर्मियों पर हाथ साफ करने से नहीं चूकते। जहां जिसका मौका लगता है, वहीं टोल प्लाजा को युद्ध का मैदान बना दिया जाता है।
यह स्थिति पैदा क्यों हुई? टोल प्लाजा का ठेका लेने वाली कम्पनियां इस स्थिति से निपटने के लिए छठे हुए गुंडों को तैनात करती हैं इन बदमाशों को सुरक्षाकर्मी का नाम दिया जाता है। बिना टोल टैक्स दिये गाड़ी निकालने की ज़िद को लेकर हंगामें होते हैं।
टोल प्लाजा पर टैक्स वसूलने वाली कम्पनियां, टोल की दरें बढ़ाती जाती हैं किन्तु सड़क की देखरेख या मार्ग पर सुविधाएँ उपलब्ध करने के प्रति लापरवाह रहती हैं। यह कानून व्यवस्था से पृथक एक और जटिल समस्या है।
एक बड़ा सवाल यह है कि जब भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सड़कों के निर्माण व रख-रखाव का उत्तरदायित्व वहन करती है और केन्द्र सरकार करदाताओं से टैक्स के अरबों रुपया वसूल करती है तो टोल प्लाजा बनाने और उन्हें ठेके पर देकर टोल टैक्स वसूल करने का क्या औचित्य है। अच्छी, गड्ढा रहित सड़कें बनाना यात्रियों के लिए पूरी सुरक्षा प्रदान करना, यानी प्रकाश, शौचालय तथा जलपान आदि की सुविधा प्रदान करना केन्द्र व राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। अब से सैकड़ों वर्ष पूर्व विदेशी आक्रान्ता शेरशाह सूरी ने ढाका से पेशावर तक ग्रांड ट्रंक रोड बनवाया था जिस पर सराय, कुवें, घुड़सवार सुरक्षाकर्मियों की व्यवस्था थी। इतनी सुविधायें यात्रियों को सैकड़ों वर्ष पूर्व उपलब्ध थीं। शेर शाह ने तो टैक्स वसूली के लिए, अलग से टोल प्लाजा नहीं बनवायें थे।
एक लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य में टोल टैक्स वसूलने का कोई औचित्य नहीं। यह कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार का हथकंडा है। केन्द्र एवं राज्य सरकारें इस भ्रष्टाचारी ठेका पद्धति को जल्द से जल्द बन्द कराये। वे एक विदेशी शासक से ही प्रेरणा लेलें और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें ताकि टोल प्लाजा युद्ध का मैदान न बन सकें।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’