उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ए.के.शर्मा ने विद्युत विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में कहा था कि विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और निकम्मेपन से उपभोक्ताओं में रोष है। बिलों के डिजिटाइलेशन के बाद से बढ़ाये गयी धनराशि में घपले की शिकायतों का अम्बार लग गया है। बिल सुधारने के नाम पर सौदेबाजी होती है और उपभोक्ताओं को ठगा जाता है। मंत्री ने कहा कि एक उपभोक्ता के पास 72 करोड़ रुपये का बिल आना हैरानी की बात है। कम्प्यूटर की गलती कह कर भ्रष्टाचार पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। बिजली विभाग की इस कार्यप्रणाली से आम लोग पीड़ित हैं और जन प्रतिनिधि होने के नाते हमें परेशानी है। ऊर्जा मंत्री ने मऊ में 24 जुलाई को इंदारा रेलवे क्रासिंग पर बनने वाले आर.ओ.बी. की जमीन का पूजन करने के बाद अपनी मन की पीड़ा को फिर प्रकट किया। श्री शर्मा ने कहा कि बर्दाश्त करने की भी सीमा होती है। बिजली विभाग पैसे बटोरने का महकमा नहीं, यह आम लोगों की सुविधा से जुड़ा प्रतिष्ठान है। भ्रष्टाचारियों को सुधर जाना चाहिए।
ऊर्जा मंत्री ने और भी खरी-खरी बातें कहीं। सामान्यतः मंत्रीगण इधर-उधर की बातें कर के जनता को भरमाने का प्रयास करते हैं किन्तु श्री शर्मा ने साहसपूर्वक खामियों को स्वीकारा।
अब 25 जुलाई की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विद्युत विभाग के उच्च अधिकारियों से कहा कि शासन ने बिजली का बड़ा बजट बनाया है। धन की कोई कमी नहीं, फिर भी बार-बार की ट्रिपिंग व कटौती की घटनाओं पर अंकुश नहीं है। आज बिजली तकनीक या प्रशासनिक विषय नहीं अपितु यह शासन की संवेदनशीलता का पैमाना बन चुका है। बिजली कार्यों में कोई शिथिलता बर्दाश्त नहीं होगी। विभाग की कार्यप्रणाली की लगातार आ रही शिकायतें इंगित करती हैं कि कहीं बड़ी खामी है।
मुख्यमंत्री एवं ऊर्जा मंत्री के कथनों से स्वतः सिद्ध है कि बिजली विभाग में सब ठीक ठाक नहीं है और दोनों जन प्रतिनिधि इनसे भलीभांति वाक़िफ है। अच्छी बात यह कि वे स्थिति को सुधारने की दिशा में अग्रसर हैं।
यूं बिजली विभाग की बदहाली, अंधेरगर्दी के लिए सिर्फ आधिकारी या कर्मचारी ही दोषी नहीं, नेता, विधायक, सांसद व मंत्री ही नहीं, उपभोक्ताओं का एक वर्ग भी दोषी है। कभी इसका विश्लेषण करेंगे।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’