आज का दुःखद समाचार – अपने विवादास्पद बयानों से चर्चा में रहने वाले सत्यपाल सिंह मलिक के निजी सचिव के.एस. राणा ने बताया कि आज सवेरे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। उनका जन्म मेरठ (अब जिला बागपत) के हिसावदा ग्राम में 24 जुलाई, 1946 को हुआ था। मेरठ कॉलेज मेरठ से बीएससी व एलएलबी परीक्षा पास की। 1968 में छात्रसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और चौधरी चरण सिंह के अनुयायी बन सन् 1974 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता आचार्य दीपांकर को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पराजित कर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। चौ. चरण सिंह ने उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भारतीय क्रांति दल, लोकदल में पदाधिकारी बनाया। चौधरी साहब ने इन्हें 1980 में राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित कराया। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते सत्यपाल मलिक ने चौ. चरण सिंह का साथ छोड़ ऊंची छलांग लगाई और जनता दल, कांग्रेस, सपा, भाजपा आदि राजनीतिक दलों की परिक्रमा कर आये। केन्द्र में वीपी सिंह सरकार में राज्यमंत्री भी रहे। बदले हुए परिवेश में प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें ओड़िशा, गोवा, मेघालय का राज्यपाल बनवाया। जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल के पद पर रहते हुए 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति की घोषणा की। यहीं से उनका पहला विवादास्पद बयान आया। श्री मलिक के बयान में यह दिखाने की कोशिश की गई कि उन्होंने अनुच्छेद 370 खत्म कर बड़ा तीर मारा है। इसके तुरंत बाद कहा कि मैंने गृहमंत्री से सेना के जवानों के लिए वायुसेना का विमान भेजने का आग्रह किया, किन्तु केन्द्र ने विमान नहीं भेजा। इसके बाद श्री मलिक ने मीडिया को बुलाकर कहा कि पुलवामा हमले में 300 किलो आरडीएक्स लेकर पाकिस्तान की कार जम्मू-कश्मीर की सड़कों पर 15-15 दिनों तक कैसे घूमती रही। फिर प्रेस को बयान दिया कि जम्मू-कश्मीर की दो जल विद्युत परियोजनाओं की स्वीकृति के लिए मुझे 300 करोड़ रूपये रिश्वत देने की पेशकश की गई। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध राज्यपाल पद पर रहते मोर्चा खोला हुआ था। अनन्त: सत्यपाल मलिक बोले कि मैं नरेंद्र मोदी को ईमानदार नहीं समझता, वे बेईमान लोगों का समर्थन करते हैं।
राज्यपाल पद पर रहते वे शामली, बागपत, मुजफ्फरनगर आये। शायद वे कथित ‘जाट’ बेल्ट में अपना राजनीतिक भविष्य टटोलना चाहते थे। उन्होंने अपने वक्तव्यों से जट सिख व जाट समुदायों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक वक्तव्य दिये। कहा कि सिख अपनी दुश्मनी को 600 वर्षों तक नहीं भुला पाता। तीन कृषि कानूनों पर कहा- आप जाटों को कभी हरा नहीं सकते। ये सब बातें श्री मलिक ने राजपाल पद पर रहते हुए कहीं। सन् 2004 में बागपत में चौ. अजित सिंह से हारने के बाद भी सत्यपाल मलिक राजनीति में दूसरा चरण सिंह बनने की कोशिश करते रहे किन्तु सफल नहीं हुए।
श्री मलिक प्रतिभावान नेता थे किन्तु अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल नहीं कर सके। जब देश में जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रांति की हवा बह रही थी, वे मुजफ्फरनगर के जी.आई.सी. मैदान की जे.पी की जनसभा में जम कर एक घंटा बोले। ‘देहात’ में यह छपा था। वे ‘देहात भवन’ भी आये। सत्यपाल मलिक से मेरे लघुभ्राता राजगोपाल सिंह की निकटता थी। उनकी बोली में शालीनता व सभ्यता थी। चिंघाड़कर, आड़ा-तिरछा मुंह करके, मुक्का तानकर नहीं बोलते थे। फिर भी राजनीति तो राजनीति है। जब रामधन, बहुगुणा, जगजीवन राम जैसे दिग्गज नेताओं ने सीएफडी बनाई तब एक घटना ने देश की राजनीति में तूफान ला दिया था। बाबू जगजीवन राम के पुत्र सुरेश और सुषमा नामक लड़की के अत्यधिक अश्लील फोटो दिल्ली से लखनऊ, बिहार तक बांटे गए। अफवाह उड़ी कि इसमें सत्यपाल मलिक और के.सी का हाथ है। यह कोरी अफवाह थी या सच्चाई, इसे तय करना बेमानी है पर यह कड़वी सच्चाई है कि इस कांड के बाद बाबू जगजीवन राम देश के प्रधानमंत्री बनने से रह गए। तब उनका भारत का प्रधानमंत्री बनना निश्चितरूप से राष्ट्र के लिए कल्याणकारी होता।
खेद है कि एक प्रतिभावान राजनीतिज्ञ को उसके जीवन के अंतिम दौर में अधिकतर लोगों ने उन्हें नायक के बजाय खलनायक के रूप में देखा। इसे भाग्य या नियति कहा जा सकता है- और नरेंद्र मोदी, भाजपा, आरएसएस को कोसने वाले सत्यपाल मलिक को साफगो-स्पष्टवादी, खरी बात कहने वाला बता कर उनकी प्रशंसा कर सकते हैं। ‘देहात’ श्री मलिक के निधन पर शोक प्रकट करता है और उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’