ये 3 घटनायें भारत के समक्ष बड़ी चुनौती !

कुछ समाचार संक्षेप में प्रस्तुत हैं। इन्हें पढ़े और सोचें कि यदि इन खबरों की डेट लाइन यानी जहां ये घटनायें घटीं उन स्थानों व राज्यों के नाम बदले हुए होते तो क्या होता?

पहला समाचार अलीगढ़ से है। बिहार के सहरसा जिले के ग्राम मियांचक का मूल निवासी मुहम्मद आज़ाद अलीगढ़ की मांस फैक्ट्री का मुलाजिम हैं। शहर के प्राचीन शिव मन्दिर के पास खड़े वृक्ष पर चढ़ कर हथौड़ा लेकर मन्दिर परिसर में कूद गया। मन्दिर की 26 मूर्तियों में से अधिकांश को हथौड़े से क्षतिग्रस्त कर दिया। दीवारों पर लगे हिन्दू देवी-देवताओं के चित्रों को भी फाड़ कर फेंक दिया। मन्दिर में लगे सी.सी.टी.वी. से उसकी पहचान हुई।

दूसरी खबर देवबंद की है। दिल्ली के थाना गोकुलपुरी के मौहल्ला मुस्तफाबाद निवासी अहमद, शहबान, शादिक तथा अफजल कार द्वारा देवबंद पहुंचे। कस्बे के बीच से गुजरने वाले ऊंचे फ्लाईओवर पर रात्रि में खड़े हो कर गुलेल के जरिये हिन्दू बस्तियों में बने मन्दिरों में अंडे व पत्थर फेंकने लगे। तीन दिनों तक यह करतूत जारी रखी। अर्द्धरात्रि को पुलिस ने इन चारों को गुलेल, अंडों, पत्थर व कार सहित दबोच लिया।

तीसरा दिल दहलाने वाला वाक्या झारखंड के दुमका शहर का है। शाहरुख नाम का एक शोहदा अंकिता नाम की हिन्दू छात्रा के पीछे पड़ा हुआ था। अपनी काली करतूत में नाकाम होने पर शाहरुख ने उस पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी। पांचवें रोज अंकिता ने दम तोड़ दिया।

आज का ज्ज्वलन्त प्रश्न यह है कि यदि मन्दिरों के बजाय मस्जिद पर पत्थर व प्रतिबंधित पशु का मांस फेंका जाता और ऐसा कुकृत्य करने वाले मुस्लिम न होकर हिन्दू होते तो क्या होता? अंकिता के बजाय सुरैया होती, शाहरुख के बजाय धर्मेंद्र होता तो क्या होता? आतंकियों और लव जेहाद वालों की कानूनी मदद करने और फतवे जारी करने वाले देवबंदी मौलानाओं के मुँह क्यों बंद हैं? आईन (संविधान) को बगल में दबाये फिरने वाले भड़काऊ भाईजान क्यों चुप्पी साधे हैं? सेक्यूलरवाद के ढिंढोरची पत्रकारों को क्यों सांप सूंघ गया? गंगा-जमनी तहजीब का ढोल पीटने वाले कथित बुद्धिजीवी क्या सो गए हैं या उनकी ज़बान को लकवा मार गया है? इनका रवैया सदा ऐसा ही रहेगा।

जुर्म और हैवानियत की करतूतों को मजहबी चश्मे से देख कर बोलने वालों को ज़रा भी शर्म हया नहीं रहीं। इन्हें डूब मरने के लिए चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होगा। भारत माता की जय बोलने वालों और तिरंगा लहराने वालों के समक्ष यह बड़ी चुनौती है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here