जलभराव की समस्या- स्थायी समाधान !

29 अगस्त, 2025 यानी शुक्रवार को मुजफ्फरन‌गर शहर और नई मंडी के बहुत बडे इलाके में 101.8 मि.मी वर्षा से पानी में डूब गए। मूसलाधार वर्षा की भयावहता इसी से ज़ाहिर हो जाती है कि नगर का मुख्य व्यावसायिक स्थल शिव चौक और गोल मार्केट के बरामदों तक बरसाती पानी पहुंच गया। जैसा कि ऐसी प्राकृतिक आपदाओं, विशेष रूप से वर्षा का प्रकोप होने पर मीडिया व नागरिक तंजभरी टिप्पणियां करने लगते हैं, 29 अगस्त के जल-भराव पर भी लोगों ने भांति-भांति की टिप्पणियां कीं, फिर तंज कसे। एक महानुभाव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली- ‘नगरपालिका को द्वारिकापुरी से कचहरी तक के लिए नाव सेवा आरम्भ करनी चाहिये।’

मीडिया मानसून की पहली बारिश पर हर बार एक सा शीर्षक लिखता है- ‘वर्षा ने खोल दी नगरपालिका के विकास की पोल’- वगैराह वगैराह। हर वर्ष नगरपालिका परिषद ‌के अध्यक्षया चेयरपर्सन, मंत्री जल भराव का आकलन करने और नागरिकों की परेशानियों को जानने को नई मंडी तथा शहर के विभिन्न मौहल्लों, बस्तियों का दौरा करते हैं। जन प्रतिनिधि के नाते उनका यह कर्तव्य भीं है।

अभी 8 जुलाई की भारी वर्षा के बाद 9 जुलाई को नगर पालिका परिषद, मुजफ्फरनगर की चेयरपर्सन श्रीमती मीनाक्षी स्वरूप ने शिवचौक घासमंडी, प्रकाश चौक, कचहरी रोड, मीनाक्षी सिनेमा चौराहा, आबकारी रोड, जनकपुरी, एकता विहार, जसवन्तपुरी, केवलपुरी, पचेंडा रोड, गांधी कॉलोनी, आदर्श कॉलोनी, खालापार, किदवईनगर, आदि अनेक जल भराव वाले क्षेत्रों का निरीक्षण किया।

12 अगस्त को वार्ड संख्या 15,21,38 की बस्तियों में पहुंच कर चेयरपर्सन ने गली-गली जाकर जानकारी ली।

नगर में जल भराव से उत्पन्न समस्या और नागरिकों की परेशानियों को जानने के लिये नगर विधायक तथा राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने रामपुरी से रामलीला टीला तक की कई बस्तियों का पैदल भ्रमण कर हाल जाना। उसके साथ-साथ अपर जिला अधिकारी प्रशासन संजय कुमार एवं पालिका की अधिशासी अधिकारी डॉ. प्रज्ञा सिंह तथा अन्य अधिकारी भी पैदल चले और स्थलीय निरीक्षण के भागीदार बने।

ऐसा नहीं कि शहर और नई मंडी में पहली बार ही जलभराव की स्थति पैदा हुई। वर्षा अथवा बरसाती पानी का रौद्र रूप सन् 1956 में देखने को मिला था। जहां अब चौराहे पर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है, तब वह स्थान खाली था। सन् 1956 के जल प्रकोप को आज भी लोग बहती या बाढ़ कह कर याद करते हैं। यहां तब चार फीट पानी का प्रवाह था। भगत सिंहरोड से आगे शामली रोड पर बस अड्डा पानी में डूबा हुआ था। मोती झील और काली नदी का पानी सड़क पर बह रहा था। कच्ची सड़क पर तालाब के पानी में मछलियों तैर रही थी। तब कृषि उत्पादन मंत्री समिति का गठन नहीं हुआ था। समस्त नई मंडी पानी में डूबी हुई थी। अनाज, गुड़, शक्कर, चीनी की खत्तियों में पानी भरने से करोड़ों रूपये की क्षति हुई थी।

कैबिनेट मंत्री बनने से पूर्व जब विद्याभूषण जी सिटी बोर्ड के चेयरमैन थे, तब भी भारी वर्षा से शहर पानी-पानी हो गया था। उस समय संग्राम सिंह रावत अधिशासी अधिकारी थे। बड़े-बड़े पम्प लगवाकर बस्तियों ने पानी निकलवाया गया था। श्री विद्याभूषण के कार्यकाल में वर्षा के पानी के भीषण प्रवाह से एक मौहल्ला लद्धावाला में एक गरीब रिक्शा चालक के दो बच्चे नाले में बह गए थे।

तात्पर्य यह कि वर्षा के जलभराव की स्थिति या समस्या नई नहीं है, यद्यपि अब स्थिति पहले से अधिक गंभीर हुई है। हमें ईमानदारी से यह स्वीकार करना होगा कि जलभराव होने या जल निकासी की व्यवस्था न होने के लिए सिर्फ नगरपालिका अथवा शासन ही उत्तरदायी नहीं है।

अब से 5-6 दशक पहले की स्थिति पर गौर कीजिये। कच्ची सड़क पर गाजीवाला नाले की पुलिया के पश्चिम में बड़ा तालाब था। आगे केवलपुरी के सामने विशाल तालाब था। इससे आगे पश्चिम में सरवट मदरसे के सामने, विशाल तालाब था। मल्हूपुरा के पूर्व में रेलवे लाइन के बराबर में गहरा व बड़ा तालाब था। रुड़‌की रोड पर वर्तमान सहारनपुर बस अड्डे के सामने बड़ा तालाब था। इसी प्रकार कंपनी बाग (कमला नेहरू वाटिका) के पीछे विशाल तालाब था। भोपा रोड पर एस.डी. डिग्री कॉलेज के सामने उत्तर की दिशा में बड़ा तालाब था।

शहर और मंडी की बस्तियों का ढलाव तालाबों की और या नालों की ओर होने से बरसाती पानी तालाबों में भर जाता था या फिर नालों के जरिये काली नदी में चला जाता था।

जल भराव की समस्या शहर के अनियोजित विकास और भू‌माफियों के प्रोत्साहन से शुरू हुई। तालाबों को पाट कर नई बस्तियां बसाई गईं। विकास प्राधिकरण के गठन से पूर्व नगर‌पालिका ने नई बस्तियों को और उनमें बनने वाली कॉलोनियों को मान्यता तो दी, यह नहीं देखा कि तालाबों या नशेब (निचले) इलाकों का पानी कहां जाएगा। मकान बनाने वालों ने भी यह नहीं सोचा। रही-सही कसर नालों में कूड़ा-कचरा डाल कर और नालों के ऊपर लेंटर डाल कर पूरी कर दी गई।

शहर और मंडी में सारे तालाबों पर कब्जे होकर बस्तियां बसा दी गई। नाली-नालों में कचरा डालकर नागरिक खुश होते हैं। अब तो सफाई कर्मी भी नालों में कचरा डालते हैं। जलभराव पर लोग नगरपालिका या प्रशासन के सिर पर ठीकरा फोड़ते हैं। जनप्रतिनिधि हर बरसात में दौरा कर आश्वासन देंगे, क्योंकि उन्हें वोट चाहियें।

नगरपालिका की चेयरपर्सन शहर के सौंदर्यीकरण की योजनाएं बता रही हैं, अमल भी कर ना चाहती हैं। 2031 की महायोजना की बात चल रही है। मुजफ्फरनगर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना है। 9 जुलाई को स्थानीय निकाय विभाग के अपर निदेशक डॉ. असलम अंसारी लखनऊ से मुजफ्फरनगर आकर स्मार्ट सिटी के बिन्दुओं पर चर्चा कर के वापस लौट गये।

मुजफ्फरनगर का स्मार्ट सिटी बनना तभी सार्थक होगा जब लोगों को जलभराव से छुटकारा मिले, और जलनिकासी की समुचित एवं स्थायी व्यवस्था हो। चेयरपर्सन ने मंडी व शहर में तीन नालों के निर्माण की घोषणा की है। जिन तालाबों में बस्तियां बस चुकी हैं, उन्हें हटाने का तो प्रश्न पैदा नहीं होता। इंजीनियरों और तकनीशियनों के परामर्श से कार्य योजना को अमल में लाया जाना जरूरी है। पालिका के सभासदों का कर्तव्य है कि वे नाली-नालों को कचरा व कबाड़ से मुक्त रखवायें। शहरियों को बताया जाए कि नगर को साफ सुथरा रखने में उनका योगदान भी आवश्यक है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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