शारिक राणा की मौत की खबर से हजारों लोगों को धक्का लगा। उनकी आकस्मिक मृत्यु का समाचार उन लोगों के लिए दुःखदायी है जो उनके आकर्षक शालीन, शिष्ट, मृदुल व्यक्तित्व से प्रभावित थे। खतौली (मुजफ्फरनगर) के सीतासरन कॉलेज में शिक्षक सीताराम शर्मा सतर के दशक में एक युवक को साथ लेकर ‘देहात’ कार्यालय आये। पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संस्थापक संपादक ‘देहात’) से परिचय कराया- ‘ये शारिक राणा है, बरेली के पठान! खतौली गंगनहर के किनारे अपना रेस्तरां खोलने जा रहे हैं।’ पिताश्री ने कहा- ‘यह तो इनकी कद-काठी से ज़ाहिर है, लेकिन पठान मुंछों पे ताव देगा या होटल, चलाएगा?’ शारिक हंसते, मुस्कराते रहे, बाद में सिद्ध कर दिया कि रेस्तरां के जिस काम को हाथ में लिया, उसे बुलंदियों पर पहुंचाना उनका मकसद था।
मुजफ्फरनगर से मेरठ-दिल्ली सड़क मार्ग से जाते हुए खतौली गंगनहर के पुल के बाईं ओर नहर की पटरी पर वन विभाग ने चीतल प्रजाति के पशुओं, हिरण आदि का एक छोटा सा पार्क खोला था। तब मुजफ्फरनगर के कांग्रेस नेता विद्याभूषण उत्तरप्रदेश सरकार के वन मंत्री थे। हरिद्वार-देहरादून जाने वाले पर्यटक नहर पुल पर रुकते थे। खासकर बच्चों को चीतल पार्क देखना अच्छा लगता था। शारिक राणा ने अपनी व्यापारिक सूझबूझ से चीतल पार्क के बराबर में रेस्तरां के लिए वन विभाग की भूमि लीज पर आवंटित कराली और चीतल के नाम से रेस्तरां आरम्भ किया। चीतल रेस्तरां चला ही नहीं, दौड़ने लगा। सफाई, स्वाद और सर्विस की बेहतरी, और इस सब से ऊपर शारिक राणा के मीठे व्यावहार ने चीतल रेस्तरां का नाम भारतभर में प्रसिद्ध कर दिया।
कालांतर में वन विभाग ने चीतल पार्क का रख रखाव छोड़ दिया। उसका आकर्षण खत्म होने से पहले दूर दृष्टा शारिक राणा ने खतौली में ही दूसरे स्थान पर चीतल ग्रैंड खोला। एक कुशल व्यावसायी की भांति बाईपास पर भी नया रेस्तरां खोला। आज हिन्दू होटल, मुस्लिम होटल, वेज-नॉन वेज का हंगामा है। शारिक राणा ने अपने व्यावहार और खाद्य-पेय पदार्थों की शुद्धता तथा स्वच्छता के चलते कोई रेखा नहीं खिंचने दी। दाढ़ी, टोपी की पहचान नहीं बनाई। ख़ुदा परस्त होते हुए भी आम हिन्दुस्तानी जैसा सभी के मनों में रचा-बसा रहा। सब का प्यारा बना रहा। वह एक बेहतर मिसाल बन कर जिया। पर अफसोस है, जल्दी चला गया। हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि।
नोटः विरक्त संत शिक्षा ऋषि की 21वीं पुण्यतिथि पर शुकतीर्थ जाने की प्रबल इच्छा थी। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण न जा सका। कांग्रेस के समर्पित निःस्वार्थ, निश्छल नेता देशबंधु गुप्ता और सी.बी. गुप्ता की जन्मतिथि पर इन महान् नेताओं को याद न कर सका। कल से इन पर कुछ लिखने की कोशिश करूंगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’