संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा मंगलवार को सिविल सर्विस एग्जामिनेशन-2024 का रिजल्ट घोषित कर दिया गया है। इस परीक्षा के जरिए कुल 1009 आवेदकों को विभिन्न पदों पर भर्ती किया जाएगा। सिविल सर्विस परीक्षा में सामान्य वर्ग के 335, ईडब्लूएस के 109, ओबीसी के 318, एससी के 160 और एसटी वर्ग के 87 उम्मीदवारों का चयन हुआ है। खास बात है कि इस बार की परीक्षा में आईपीएस के पदों पर कैंची चलती हुई दिखाई पड़ रही है। इस परीक्षा में आईपीएस के लिए 147 उम्मीदवारों का चयन किया गया है, जबकि 2023 के परिणाम में आईपीएस के 200 पद भरे गए थे। देश में पिछले साल तक आईपीएस अधिकारियों के लगभग 586 पद खाली थे। आईपीएस के कुल 5,055 स्वीकृत पदों के मुकाबले 4,469 अधिकारी ही तैनात हैं।
सिविल सर्विस एग्जामिनेशन-2023 के रिजल्ट में आईपीएस के 200 पदों पर चयन किया गया था। उससे पहले 2022 के दौरान भी आईपीएस के 200 पद रखे गए थे। साल 2021 और 2020 में भी आईपीएस के 200-200 पदों पर भर्ती की गई थी। अगर 2019 की बात करें तो आईपीएस के लिए 150 पद रखे गए थे। इसके बाद सिविल सर्विस एग्जामिनेशन-2009 से लेकर सिविल सर्विस एग्जामिनेशन-2019 तक के सभी परिणामों में आईपीएस के 150 पदों को ही भरा गया था।
सिविल सर्विस एग्जामिनेशन-2008 में आईपीएस के 130 पद रखे गए थे। इससे पहले आईपीएस का आंकड़ा और भी अधिक कम रहा था। 2007 में आईपीएस के 103 पद ही भरे जा सके थे। 2006 में 103 और 2005 में भी इतने ही पदों को मंजूरी प्रदान की गई थी। गत वर्ष 12 दिसंबर को राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में डीओपीटी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया था कि देश में पहली जनवरी, 2024 तक आईएएस के कुल स्वीकृत 6,858 पदों में से 5,542 पदों पर अधिकारी तैनात हैं। वहीं आईपीएस के कुल 5,055 स्वीकृत पदों की तुलना में 4,469 अफसर तैनात हैं।
साल 2022 में विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय, के लिए गठित संसदीय स्थायी समिति की 112वीं रिपोर्ट में यूपीएससी की कार्य प्रणाली को लेकर कई तरह की टिप्पणियां की गई थी। राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यूपीएससी जब सिविल सेवा भर्ती की अधिसूचना जारी करती है, तो उस वक्त निर्धारित पदों की एक तय संख्या बताई जाती है। इसके बाद जब सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा होती है तो उस वक्त पदों की संख्या बदल जाती है। जब मुख्य परीक्षा होती है, तो एक बार फिर से पदों की संख्या परिवर्तित हो जाती है। इतना ही नहीं, परीक्षा का फाइनल रिजल्ट आने से पहले फिर से पदों की संख्या बदल जाती है।
संसदीय समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था, यह एक स्वस्थ परंपरा नहीं है। संघ लोक सेवा आयोग ने पिछले एक दशक के दौरान यह परपंरा कई बार दोहराई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 में यूपीएससी ने सिविल सेवा के 965 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया की अधिसूचना जारी की थी। जब प्रारंभिक परीक्षा हुई तो निर्धारित पदों की संख्या में बदलाव कर दिया गया। पदों की संख्या 965 से 1014 हो गई। मुख्य परीक्षा का रिजल्ट जारी करने से पहले 1064 पद कर दिए गए। इतना ही नहीं, भर्ती प्रक्रिया का फाइनल रिजल्ट आने से पहले 1043 पद हो गए। साल 2011 में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। तब 880 पदों के साथ अधिसूचना जारी हुई थी। प्रारंभिक परीक्षा का नतीजा आने से पहले पदों की संख्या 957 कर दी गई। 2012 में भी अधिसूचना के वक्त 1037 पद बताए गए थे, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आने से पहले पदों की संख्या 1044 हो गई।
2014 में जब अधिसूचना जारी हुई तो भर्ती के लिए 1291 पद तय थे। प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आने से पहले 1364 पद कर दिए गए। 2016 में भी इसी तरह से 1079 पदों की संख्या को बाद में 1209 कर दिया गया। 2019 में 896 पदों पर भर्ती की अधिसूचना जारी की गई। प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आने से पहले पदों की संख्या 936 हो गई। मुख्य परीक्षा का परिणाम आने से पहले पदों की संख्या 927 कर दी गई। 2020 में 796 पदों के लिए अधिसूचना जारी की गई, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आने से पहले उसे 836 कर दिया गया।
कमेटी ने महसूस किया था, भर्ती की अधिसूचना जारी होने के दौरान ही उतने पद बढ़ा दिए जाएं, जितने कि प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और फाइनल नतीजा आने से पहले बढ़ाए जाते हैं, तो ज्यादा उम्मीदवारों को आगे आने का मौका मिल सकता है। अगर प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आने से पहले वह संख्या बढ़ती है, तो कहीं ज्यादा उम्मीदवार मुख्य परीक्षा तक पहुंच सकते हैं। समिति ने यूपीएससी को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वह पदों की संख्या परीक्षा के शुरू होने से लेकर अंतिम परिणाम आने तक वही रखे। आयोग को इसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन करना चाहिए। वह कमेटी समय-समय पर होने वाले बदलावों के प्रभाव का अध्ययन करे। स्कीम और सिलेबस को लेकर अपने सुझाव दे।