चुनावी बॉण्ड योजना चयनात्मक गुमनामी और गोपनीयता प्रदान करती है: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, एक नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना के साथ समस्या यह है कि यह ‘चयनात्मक गुमनामी’ और ‘चयनात्मक गोपनीयता’ प्रदान करती है क्योंकि विवरण स्टेट बैंक के पास उपलब्ध रहता है और उन तक कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी पहुंच सकती हैं।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि योजना के साथ (इस तरह की) समस्या रहेगी यदि यह सभी राजनीतिक दलों को समान अवसर नहीं प्रदान करती और अस्पष्टता से ग्रस्त है।

शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉण्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुनने के दौरान कहा कि इस योजना के पीछे का उद्देश्य पूरी तरह से प्रशंसनीय हो सकता है, लेकिन चुनावी प्रक्रिया में सफेद धन लाने के प्रयास में यह अनिवार्य रूप से एक ‘संपूर्ण सूचना छिद्र’ उपलब्ध कराता है।

पीठ ने केंद्र की ओर से बहस कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा ‘‘योजना के साथ समस्या यह है कि यह चयनात्मक गुमनामी का प्रावधान करती है। यह पूरी तरह से गुमनाम नहीं है, यह चयनात्मक गुमनामी है, यह चयनात्मक गोपनीयता प्रदान करती है… यह भारतीय स्टेट बैंक के लिए गोपनीय नहीं है। यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए गोपनीय नहीं है।’’

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा इस पीठ के सदस्य हैं।

इस योजना के तहत, चुनावी बॉण्ड एसबीआई की कुछ अधिकृत शाखाओं से जारी या खरीदे जा सकते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपका यह तर्क कि देखिये यदि आप इस योजना को रद्द कर देते हैं, तो आप उस स्थिति में चले जाएंगे जो पहले से मौजूद थी… लेकिन यह इस कारण से मान्य नहीं हो सकता कि हम सरकार को एक पारदर्शी योजना या ऐसी योजना लाने से नहीं रोक रहे हैं, जो समान अवसर उपलब्ध कराए।’’

दिन भर चली सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि कोई भी बड़ा दानकर्ता कभी भी राजनीतिक दलों को देने के उद्देश्य से चुनावी बॉण्ड खरीदने का जोखिम नहीं उठाएगा और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के खाते की खाता-बही में शामिल होने के कारण भी कभी इसमें नहीं पड़ेगा।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एक बड़ा दानकर्ता उन लोगों को दान का पैसा वितरित कर सकता है जो बाद में नकद के बजाय आधिकारिक बैंकिंग चैनल के माध्यम से छोटी राशि के चुनावी बॉण्ड खरीदेंगे।

मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि वह पूरी योजना को स्पष्ट करेंगे। मेहता ने कहा कि इसमें प्रत्येक शब्द को बहुत विवेकपूर्वक उपयोग किया गया और याचिकाकर्ताओं ने जिसे ‘गुमनामी’ या ‘अपारदर्शिता’ कहा है वह न तो गुमनाम है और न ही अपारदर्शी, हालांकि डिजाइन के लिहाज से यह ‘गोपनीयता’ है।

पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करना कि चुनावी चंदा कम से कम नकद घटक पर निभर्र हो और इसे अधिक से अधिक जवाबदेह बनाया जाए, निश्चित रूप से प्रगति का काम है इसमें कोई समस्या नहीं है।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत यह नहीं कह रही है कि योजना कैसी होनी चाहिए।

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि मुद्दों में से एक चयनात्मक गोपनीयता है और सत्ता में मौजूद पार्टी के लिए चुनावी बॉण्ड के बारे में जानकारी प्राप्त करना आसान हो सकता है।

उन्होंने कहा कि चयनात्मक गोपनीयता के कारण, विपक्षी दलों को यह नहीं पता होगा कि दानकर्ता कौन हैं, लेकिन कम से कम जांच एजेंसियों द्वारा विपक्षी दलों के दानदाताओं की पहचान की जा सकती है।

मेहता ने कहा, ‘‘हमें किसी न किसी स्तर पर अंतिम प्राधिकारी के रूप में किसी पर भरोसा करना होगा।’’ उन्होंने आगे कहा, ”इस योजना के माध्यम से किसी ने भी आपका आधिपत्य नहीं लिया है… केंद्र सरकार सहित किसी को भी पता नहीं चल सकता है।”

दलीलों के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह योजना प्रतिशोध की आशंका को भी खत्म नहीं करती है।

पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार नहीं कर रही है कि कोई विशेष राजनीतिक दल दूसरे से अधिक पवित्र है या नहीं, बल्कि वह केवल संवैधानिकता के प्रश्न का पड़ताल कर रही है।

मेहता ने पीठ से कहा कि हर देश चुनाव और राजनीति में काले धन के इस्तेमाल की समस्या से जूझ रहा है।

मेहता ने कहा कि कई तरीकों को आजमाने के बावजूद प्रणालीगत विफलताओं के कारण काले धन के खतरे से प्रभावी ढंग से नहीं निपटा जा सका है, इसलिए वर्तमान योजना बैंकिंग प्रणाली और चुनाव में सफेद धन को सुनिश्चित करने का एक विवेकपूर्ण और श्रमसाध्य प्रयास है।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने याचिकाकर्ताओं की ओर से रिश्वत के बदले दिए जाने वाले चुनावी बॉण्ड के बारे में दी गई दलीलों का उल्लेख किया।

पीठ ने निर्चाचन आयोग से प्रत्येक आम चुनाव या राज्य चुनावों के लिए आवश्यक कुल औसत वित्तपोषण और इन बॉण्ड के माध्यम से एकत्र की गई और उपयोग की गई राशि के बारे में पूछा।

इस योजना को सरकार द्वारा दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉण्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल, जिन्हें लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों, केवल वही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के लिए पात्र हैं।

अधिसूचना के अनुसार, चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा।

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