किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह !

देश की आज़ादी के सात दशक से अधिक बीत जाने के बाद भी धरतीपुत्र आज सड़कों पर है, यह दर्शाता है कि किसानों की अनेक समस्यायें और प्रश्न अनुत्तरित है। ऐसे में महान देशभक्त एवं किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की याद आती है जिन्होंने अपने जीवन का एक-एक पल समाज एवं किसानों के हित में लगाया था।

चौधरी साहब का जन्म 23 दिसंबर, 1902 को बुलंदशहर के ग्राम नूरपुर के किसान चौ. मीर सिंह के घर हुआ था। चौधरी साहब के परिवार का संबंध बल्लबगढ़ के क्रांतिकारी राजा नाहर सिंह से था जिन्होंने सन् 1887 की क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाये थे। क्रांति विफल होने पर ब्रिटिश सरकार ने राजा नाहर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक पर फांसी दे दी थी। अंग्रेजों के उत्पीड़न से त्रस्त चौधरी चरण सिंह के दादा बल्लबगढ़ को छोड़ जिला बुलंदशहर चले आये थे।

बी.एससी, एम.ए, और एलएलबी उत्तीर्ण करने के पश्चात चौ. चरण सिंह ने 1928 में गाजियाबाद में वकालत आरंभ की। देश में तब महात्मा गांधी की अगुवाई में विदेशी शासन से मुक्ति का आंदोलन चल रहा था। आपने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी की स्थापना की। 1930 में गांधी जी के नमक सत्याग्रह आंदोलन में शामिल होने पर 6 मास के कारावास की सजा हुई। जब उत्तरप्रदेश में अंतरिम सरकार बनाने का समझौता हुआ तो 1937 में चौधरी साहब छपरौली से यूपी लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य चुने गए। यह प्रयोग कुछ समय तक ही चल पाया और असेम्बली भंग कर दी गई। 1940 में चौधरी साहब की फिर गिरफ्तारी हुई। 1942 के असहयोग आन्दोलन में गिरफ्तार होने पर उन्हें डेढ़ वर्ष कारावास की सजा हुई। कारावास अवधि में ही उन्होंने ‘शिष्टाचार’ नाम की पुस्तक लिखी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे 1952, 1962 तथा 1967 में विधायक निर्वाचित हुए। पंडित गोविंद वल्लभ पंत सरकार में वे संसदीय सचिव बने। सम्पूर्णानन्द मंत्रिमण्डल में मंत्री बने। सी.बी गुप्ता मंत्रिमण्डल में भी मंत्री रहे। 1967 में कांग्रेस छोड़ दी और मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए।

चौ. चरण सिंह ईमानदार और सख्त प्रशासक के रूप में विख्यात थे। वे किसान मजदूर तथा आम आदमी के प्रबल हिमायती थे। संसदीय सचिव के रहते किसानों की फसल की खरीद के संबंध में ऐसा प्रारूप रूप बनाया जो न सिर्फ उत्तरप्रदेश में बल्कि पूरे देश मे लागू हुआ। भूमि प्रबंधन और चकबंदी के नियम लागू किये। ग्रामों में गोचर भूमि (चरागाह), ग्रामीण शिल्पकारों जैसे बढ़ई, लौहार, कुम्हार व चर्मकारों, आदि के लिए कार्यशालाएं स्थापना का प्रावधान, सार्वजनिक तालाबों व पाठशालाओं व पंचायत भवन का निर्माण का नियम बनाया तथा भूमिहीन किसानों, मजदूरों के लिए जमीन के पट्टे आवंटित करने के नियम बनाए।

चौधरी साहब का यह चित्र ‘दैनिक देहात’ के फोटोग्राफर उपेन्द्र तलवार ने सन् 1978 की विराट किसान रैली से पूर्व दिल्ली में खीचा था।

चौधरी चरण सिंह की स्पष्टवादिता तथा किसान हितेषी रुख से कांग्रेस में उनका विरोध होने लगा। नागपुर कांग्रेस महाअधिवेशन में पं. जवाहर लाल नेहरू के सहकारी खेती के प्रस्ताव का उन्होंने डट कर विरोध किया। कांग्रेस के किसान विरोधी नेताओं ने उन्हें पार्टी में बने रहना दूभर कर दिया।

चौधरी साहब के प्रति कांग्रेस नेतृत्व का रुख विरोधात्मक रहा। उनको कांग्रेस में रहते अनेक प्रकार से अपमानित और परेशान किया गया। जब वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो सचिवालय के कर्मचारियों को उनके विरूद्ध भड़काया गया। कांग्रेस नेताओं के इशारे पर कर्मचारी यूनियन के नेता पी.एन सुकुल लंच टाइम में विधान भवन के सामने कर्मचारियों को लेकर चौधरी साहब को रोज गालियां देते थे। सुकुल को इस बेहूदगी के लिए पुरस्कृत करते हुए कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया। जब वे प्रधानमंत्री बने तो थोड़े दिनों बाद ही इंदिरा गांधी ने समर्थन वापिस लेकर उनकी सरकार गिरा दी। जब 29 मई को वे दिवंगत हुए तो यमुना तट पर अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं दी गई। इस पर चौ. महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों से दिल्ली कूच करने का आह्वान किया और कहा कि जमना का किनारा नेहरू-इंदिरा खानदान के लिए क्या आरक्षित है। बड़ी विवशता से अंतिम संस्कार की आज्ञा दी गई। राजनीति कितनी गंदी है कि चौधरी साहब के वंशज अपने पिता के घोर अपमान को भूलकर, अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने में लगे है।

चौधरी साहब के जन्मदिन पर एक सवाल यह भी उठता है कि राजस्व मंत्री के रूप में चौधरी साहब ने बचत की भूमि पर ग्रामीण दस्तकारों के लिए कार्यशाला बनाने, चरागाह की जमीन छोड़ने, तालाब व भूमिहीनों को आवासीय पट्टे देने का जो नियम बनाया था उसका क्या हुआ और इन जमीनों पर किन लोगों के कब्जे है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं हट सके? चौधरी साहब ने कहा था कि किसान गन्ने के साथ बहु फसली खेती करें, उस पर किसने अमल किया? रमाला चीनी मिल के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने किसानों को उद्यमों की स्थापना में सहयोग करने कि सलाह दी थी और कहा था कि खेती व उद्योग एक दूसरे के पूरक हैं। किसानों से हमदर्दी जताने वाले नेता उद्यमियों को अछूत बता कर उनकी इस्ट इंडिया कंपनी से तुलना कर रहे हैं। अनुशासन और राष्ट्रवाद के प्रबल हिमायती चौधरी साहब के सादर्शों को आज कौन स्वीकार कर रहा है?

हम किसानों के इस महानायक को श्रद्धा से प्रणाम करते है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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