पिछले कई महीनों से जारी किसानों के आंदोलन को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चिंता जताई है। प्रदर्शन शुरू होने के बाद पहली बार अपनी परेशानी को जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि प्रदर्शन का पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने आंदोलन में भाग लेने वाले किसानों को नसीहत दी है कि अगर वह केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं तो इसे नई दिल्ली में करें। कैप्टन ने किसानों से अपील की है कि आंदोलन को पंजाब से बाहर ले जाएं। उन्होंने कहा कि अगर आप केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं, तो अपना विरोध प्रदर्शन दिल्ली में ट्रांसफर करें, पंजाब को परेशान न करें।
पंजाब के होशियारपुर जिले के मुखलियाना गांव में एक सरकारी कॉलेज की आधारशिला रखने के कार्यक्रम में शामिल होते हुए सिंह ने कहा कि आज भी किसान राज्य में 113 जगहों पर विरोध कर रहे हैं। उनका यह विरोध हमारे विकास को प्रभावित कर रहा है। कैप्टन ने भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के बीच लोन माफी के चेक भी वितरित किए। किसानों की समस्याओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमें किसानों की समस्याओं का अहसास है इसलिए गन्ने की कीमतों में इजाफा किया गया है।
कैप्टन अमरिंदर ने नवांशहर के बल्लोवाल सौंखड़ी और कंडी इलाके के किसानों के लिए राहत का ऐलान करते हुए कहा कि इस इलाके में जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाए जाने की बात सामने आई है। इससे बचने के लिए किसानों को कांटेदार बाड़ लगाने के 90 फीसदी की सब्सिडी मिलेगी। बताते चलें कि पहले यह 50 फीसदी हुआ करती थी। उनके इस ऐलान पर किसानों ने कहा कि भले ही सब्सिडी 50 फीसदी से बढ़ाकर 90 फीसदी कर दी गई हो लेकिन हकीकत ये है कि इसका फायदा सभी किसानों को नहीं मिल पाता है।
किसानों की शिकायत है कि कैप्टन अमरिंदर ने आज ऐलान तो कर दिया लेकिन पिछले कई महीनों से 200 से ज्यादा किसानों की फाइलें वन विभाग में धूंल फांक रही हैं। सभी एप्लीकेशन को फंड की कमी का हवाला देकर रोक दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसे ऐलानों से सभी किसानों को फायदा मिलेगा या नहीं।
दिल्ली की सीमाओं पर बैठे ज्यादातर किसान हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। इन सभी जगहों पर किसानों को रिझाने के लिए तमाम वादे और दावे किए जा रहे हैं। पिछले दिनों हरियाणा में करनाल लाठीचार्ज की घटना से नाराज किसानों को शांत करने के लिए SDM के खिलाफ जांच के आदेश और मृतक किसान के परिवार को मुआवजा व सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया गया था। फिलहाल किसान अपनी मांगों पर डटे हुए हैं। आंदोलन से जुड़े किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगों को स्वीकार करते हुए सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लेती है तब तक वह डटे रहेंगे।