ब्यूनस आयर्स। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जावियर मिलेई ने रविवार को संपन्न हुए मध्यावधि चुनावों में प्रमुख प्रांतों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। इस जीत के साथ उनकी पार्टी ‘ला लिबर्टाड अवांजा’ को कांग्रेस (संसद) में बहुमत के करीब पहुंचने का मौका मिला है, जिससे अब उनके लिए आर्थिक सुधारों को लागू करना आसान हो जाएगा।
40 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए
स्थानीय मीडिया और चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मिलेई की पार्टी ने राष्ट्रीय चुनावों में 40 फीसदी से अधिक वोट प्राप्त किए। पार्टी को निचले सदन की लगभग आधी सीटों पर दोबारा जीत मिली, जबकि सीनेट के एक तिहाई हिस्से में हुए चुनावों में आठ में से छह प्रांतों में जीत दर्ज की। इसके मुकाबले वामपंथी विपक्ष को केवल 31 फीसदी वोट मिले, जो पिछले कई वर्षों में उसका सबसे कमजोर प्रदर्शन माना जा रहा है।
संसद में अब और मजबूत होंगे मिलेई
जीत के बाद राष्ट्रपति मिलेई ने कहा कि उनकी पार्टी ने निचले सदन में अपनी सीटें 37 से बढ़ाकर 101 कर ली हैं, जबकि सीनेट में भी अब उनके पास कुल 20 सीटें हैं। इससे अब वे राष्ट्रपति वीटो का उपयोग, महाभियोग को रोकने और कर एवं श्रम सुधार जैसे अहम कदम उठाने की स्थिति में आ गए हैं।
मिलेई बोले– "हमने प्रगति को चुना है"
अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए मिलेई ने कहा, “अर्जेंटीना की जनता ने पेरोनिज्म के दशकों पुराने शासन को पीछे छोड़ दिया है और अब विकास की दिशा में कदम बढ़ाया है।” उन्होंने पार्टी मुख्यालय में मंच पर पहुंचकर अपनी प्रसिद्ध ‘डेथ-मेटल’ धुन पर कहा, “मैं एक खोई हुई दुनिया का राजा हूं।”
अमेरिकी समर्थन और ट्रंप की चेतावनी
रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि अगर मिलेई चुनाव हारते हैं तो अर्जेंटीना को मिलने वाली 20 अरब डॉलर की सहायता पर असर पड़ सकता है। वहीं, चुनाव के दौरान केवल 68 फीसदी मतदान हुआ, जो 1983 में लोकतंत्र की वापसी के बाद सबसे कम प्रतिशतों में से एक है।
सुधारों से मिली राहत, लेकिन जनता पर असर कायम
मिलेई ने सत्ता संभालने के बाद सरकारी खर्च और सब्सिडी में कटौती की थी। इन सख्त कदमों से महंगाई दर में गिरावट जरूर आई है, लेकिन आम नागरिक अब भी आर्थिक दबाव झेल रहे हैं। बिजली और सार्वजनिक परिवहन की कीमतों में वृद्धि हुई है और बेरोजगारी दर में भी इजाफा देखा गया है।
यह जीत मिलेई के लिए न केवल राजनीतिक मजबूती का प्रतीक है, बल्कि उनके उदारवादी आर्थिक एजेंडे को गति देने का अवसर भी लेकर आई है।