अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने के फैसले से तनाव गहरा गया है। इस मुद्दे पर चीन भी भारत के साथ खड़ा दिखाई दिया और अमेरिका पर तीखा हमला बोला। भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा— “धमकाने वाले को एक इंच भी दो, तो वह एक मील ले लेगा।” इस टिप्पणी के साथ उन्होंने एक संदेश भी साझा किया, जिसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला के मुख्य सलाहकार सेल्सो अमोरिम के बीच हुई बातचीत का अंश शामिल था। इसमें कहा गया— “दूसरे देशों पर दबाव बनाने के लिए टैरिफ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना संयुक्त राष्ट्र चार्टर के खिलाफ है, यह विश्व व्यापार संगठन के नियमों को कमजोर करता है और अस्थिरता को बढ़ावा देता है।”
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने भारत पर कुल मिलाकर 50% तक टैरिफ लागू कर दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर दावा किया कि इससे अमेरिका में अरबों डॉलर आने लगेंगे, और साथ ही चेतावनी दी कि आगे और भी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने सेकेंडरी सैंक्शन्स का भी संकेत दिया, मानो टैरिफ को किसी भी देश को झुकाने का सबसे बड़ा हथियार मानते हों।
अमेरिका के लिए उल्टा असर?
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के इस कदम से भारत में व्यापारिक दिक्कतें तो बढ़ेंगी ही, लेकिन सबसे बड़ा दबाव खुद अमेरिका पर पड़ेगा। बीते 100 वर्षों में यह वहां लगाया गया सबसे बड़ा टैरिफ है, जिससे आने वाले समय में अमेरिकी महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और संतुलन के साथ छेड़छाड़ अमेरिका के लिए नुकसानदेह हो सकती है। आंकड़ों के मुताबिक, इन टैरिफ से अमेरिका की जीडीपी को 11 लाख 60 हजार करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है, जबकि प्रति अमेरिकी नागरिक को सालाना करीब दो लाख रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा। इसके अलावा, इससे रोजगार में बढ़ोतरी के बजाय कमी देखी जा रही है—हाल के महीनों में अमेरिका में पिछले 15 साल का सबसे कम जॉब ग्रोथ दर्ज हुआ है।
भारत पर असर
ट्रंप का यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनौती है। तेजी से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहे भारत के लिए यह झटका अमेरिकी बाजार में पैठ बनाने की प्रक्रिया को कठिन बना देगा। निर्यात में गिरावट, डॉलर आमदनी में कमी और अमेरिका में व्यापारिक पहुंच सीमित होना तय है। इसके साथ ही, एशिया में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद साझेदार भारत उससे दूर हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे न केवल भारत में रोजगार के अवसर घटेंगे बल्कि चीन को काउंटर करने की अमेरिकी रणनीति और इंडो-पैसिफिक में बने QUAD जैसे मंचों की प्रभावशीलता भी कम हो सकती है।