न्यूयॉर्क। अमेरिका की दूरसंचार क्षेत्र की एक कंपनी इन दिनों एक बड़े वित्तीय विवाद को लेकर सुर्खियों में है। मामला करीब 50 करोड़ डॉलर (लगभग 4,000 करोड़ रुपये) के कथित घोटाले का है, जिसके केंद्र में हैं भारतीय मूल के सीईओ बंकिम ब्रह्मभट्ट, जो ब्रॉडबैंड टेलीकॉम और ब्रिजवॉइस नामक कंपनियों के संस्थापक और प्रमुख हैं।
ब्लैकरॉक समेत कई निवेशक पहुंचे अदालत
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की दिग्गज निवेश फर्म ब्लैकरॉक इंक. की एक सहयोगी इकाई और कई अन्य ऋणदाताओं ने अगस्त में अदालत में याचिका दाखिल की है। इन कंपनियों का दावा है कि ब्रह्मभट्ट की फर्मों पर उनका 50 करोड़ डॉलर से अधिक का बकाया है। रिपोर्ट में बताया गया कि इस वित्तीय लेनदेन में फ्रांस के बैंक बीएनपी परिबास ने भी मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी और उसने ब्लैकरॉक की इकाई एचपीएस इन्वेस्टमेंट पार्टनर्स को बंकिम ब्रह्मभट्ट के ऋण वित्तपोषण में सहायता दी थी। हालांकि, बैंक ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद एसेट-बेस्ड फाइनेंसिंग (Asset-Based Financing) नामक ऋण व्यवस्था से जुड़ा है। इस प्रणाली में कंपनियां अपनी आय, उपकरण या ग्राहक भुगतान को संपार्श्विक (collateral) के रूप में रखकर फंड जुटाती हैं। सामान्य परिस्थितियों में यह प्रक्रिया सुरक्षित मानी जाती है, क्योंकि उधारदाताओं के पास वास्तविक संपत्ति की गारंटी होती है। लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार हुआ है, जिसके चलते धोखाधड़ी और वित्तीय अनियमितताओं की घटनाएं भी बढ़ी हैं।
बंकिम ब्रह्मभट्ट का पक्ष
बंकिम ब्रह्मभट्ट ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को निराधार बताया है। उनके वकील का कहना है कि यह केवल “व्यावसायिक मतभेद” का मामला है, न कि किसी तरह की धोखाधड़ी या जानबूझकर की गई गड़बड़ी का। मामला फिलहाल अमेरिकी अदालत में विचाराधीन है और संबंधित एजेंसियां जांच कर रही हैं।
मामला क्यों है खास
यह विवाद इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि इसमें दुनिया की सबसे बड़ी निवेश कंपनी ब्लैकरॉक, फ्रांस का प्रमुख बैंक बीएनपी परिबास, और भारतीय मूल के उद्योगपति बंकिम ब्रह्मभट्ट—तीनों शामिल हैं। यह मामला अमेरिकी ऋण बाजार के उस हिस्से पर भी सवाल खड़े करता है, जो अब तक नियामक निगरानी से काफी हद तक बाहर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद न केवल अमेरिका की निजी ऋण प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है, बल्कि निवेशकों के भरोसे और वित्तीय विनियमन की सीमाओं पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है।