फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की मांग को लेकर वैश्विक समर्थन लगातार बढ़ रहा है। फ्रांस के बाद अब ब्रिटेन ने भी संकेत दिया है कि यदि इजराइल गाजा में संघर्षविराम नहीं करता, तो वह सितंबर तक फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने पर विचार करेगा। इसके साथ ही फिलिस्तीन को समर्थन देने वाले देशों की संख्या संयुक्त राष्ट्र में बढ़कर 149 हो गई है। बावजूद इसके, उसे अब तक संयुक्त राष्ट्र की औपचारिक मान्यता नहीं मिल पाई है।
संयुक्त राष्ट्र की सीमाएं और वीटो बाधा
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार, किसी देश को सदस्यता तभी दी जा सकती है जब सुरक्षा परिषद की सिफारिश के बाद महासभा में दो-तिहाई देशों का समर्थन मिले। इसके अतिरिक्त, सुरक्षा परिषद के सभी पाँच स्थायी सदस्य (P5) — अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन — इस पर सहमत हों। यदि इनमें से कोई एक देश वीटो का प्रयोग कर दे, तो प्रस्ताव खारिज हो जाता है।
हाल ही में अमेरिका ने फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्यता देने के प्रस्ताव पर वीटो लगा दिया। यह प्रस्ताव अल्जीरिया द्वारा पेश किया गया था और सुरक्षा परिषद के 15 में से 12 सदस्यों ने इसका समर्थन किया था, जबकि दो सदस्य अनुपस्थित रहे।
फिलिस्तीन की वर्तमान स्थिति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" का दर्जा दिया था। इससे उसे कई यूएन एजेंसियों जैसे यूनिसेफ और यूनेस्को में भागीदारी का अवसर मिला, लेकिन पूर्ण सदस्यता की कानूनी स्थिति नहीं मिल सकी। 1988 में फिलिस्तीनी स्वतंत्रता की घोषणा के बाद भी संयुक्त राष्ट्र की मान्यता की प्रक्रिया विभिन्न अड़चनों के चलते अधूरी रह गई।
1974 में महासभा ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन वर्षों तक चली कूटनीतिक प्रक्रियाओं के बावजूद फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता नहीं मिल पाई है।
2023-24 की developments
2023 में फिलिस्तीन ने फिर से यूएन महासचिव को पूर्ण सदस्यता के लिए औपचारिक आवेदन दिया। इस पर लंबी चर्चा हुई, लेकिन सदस्य देशों में आम सहमति नहीं बन सकी। 2024 में जब प्रस्ताव एक बार फिर सुरक्षा परिषद में आया, तो अमेरिका ने वीटो कर दिया, जिससे यह प्रयास भी रुक गया। इसके तुरंत बाद, अरब लीग के अध्यक्ष यूएई ने महासभा में प्रस्ताव लाकर फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
निष्कर्ष
फिलहाल, संयुक्त राष्ट्र के नियम और अमेरिका जैसे शक्तिशाली सदस्य के वीटो के चलते फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता नहीं मिल पाई है, हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उसके पक्ष में खड़ा दिखाई दे रहा है।