वॉशिंगटन/नई दिल्ली। अमेरिका की रिपब्लिकन नेता और पूर्व राजदूत निक्की हेली ने जोर देकर कहा है कि वॉशिंगटन को भारत जैसे भरोसेमंद सहयोगी के साथ अपने संबंध खराब करने से बचना चाहिए, जबकि चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों को रियायतें देना अनुचित है। उनका यह बयान उस वक्त आया जब पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ बढ़ाने और रूसी तेल आयात को लेकर कार्रवाई की बात कही है।
निक्की हेली ने मंगलवार को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा कि "भारत को भले ही रूस से तेल खरीदने से बचना चाहिए, लेकिन अमेरिका के लिए कहीं ज्यादा चिंता की बात यह है कि चीन — जो एक खुला प्रतिद्वंद्वी है — रूस और ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार बना हुआ है, और फिर भी उसे **90 दिनों के लिए टैरिफ में राहत दी गई है।"
"चीन को छूट देना ठीक नहीं"
पूर्व दक्षिण कैरोलाइना गवर्नर और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की प्रतिनिधि रह चुकीं हेली ने कहा कि अमेरिका को भारत जैसे रणनीतिक साझेदार को नाराज करने के बजाय चीन के प्रति कठोर रुख अपनाना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि रूस से व्यापार पर भारत को घेरना तब उचित नहीं है, जब खुद चीन को व्यापार में रियायतें दी जा रही हैं।
ट्रंप की टिप्पणी और भारत पर असर
निक्की हेली का बयान ऐसे समय आया है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को अच्छा व्यापारिक साझेदार नहीं बताते हुए कहा कि अगले 24 घंटे में भारत से आयात पर टैरिफ में भारी वृद्धि की जाएगी। उनका आरोप था कि भारत न केवल रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीद रहा है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुनाफे पर बेच भी रहा है। ट्रंप ने कहा कि "भारत यूक्रेन युद्ध के बीच रूस की सैन्य ताकत को ईंधन दे रहा है," और ऐसे में 25% पारस्परिक शुल्क और अतिरिक्त जुर्माना लगाए जाने की योजना है।
भारत की प्रतिक्रिया
अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणियों पर भारत ने कड़ा ऐतराज जताया। विदेश मंत्रालय ने इसे अनुचित, भेदभावपूर्ण और बिना तथ्यों के लिया गया निर्णय करार देते हुए कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार कदम उठा रहा है। विदेश मंत्रालय ने यह भी याद दिलाया कि युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप की ओर पारंपरिक तेल आपूर्ति मोड़ दी गई थी, और भारत को वैकल्पिक स्रोतों से ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करनी पड़ी।
अमेरिका-चीन के बीच टैरिफ विराम
अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और चीन के बीच मई 2025 में 90 दिनों के टैरिफ विराम पर सहमति बनी थी। इस समझौते के तहत, अमेरिकी टैरिफ 145% से घटाकर 30% और चीन के शुल्क 125% से घटाकर 10% कर दिए गए थे। ऐसे में भारत को कठोर कार्रवाई का सामना करना और चीन को रियायत मिलना अमेरिका की दोहरी नीति की ओर संकेत करता है।