नई दिल्ली: भारतीय सेना ने संयुक्त राष्ट्र में आयोजित सैन्य योगदानकर्ता देशों के सेनाध्यक्षों के सम्मेलन में पाकिस्तान परशब्द आपत्तियों के जवाब और हालिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के कारणों व परिणामों पर विस्तृत प्रस्तुति दी। सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने घटनाक्रम और अभियानों के ऐतिहासिक-पृष्ठभूमि सहित तमाम पहलुओं को स्क्रीन पर दिखाई गई सैटेलाइट व स्ट्राइक तस्वीरों के माध्यम से समझाया।
लेफ्टिनेंट जनरल घई ने कहा कि भारत ने लंबे समय तक संयम बरती, लेकिन 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए क्रूर आतंकी हमले ने सीमित प्रतिक्रिया की संभावना को चुनौती दे दी। उनके अनुसार, एलओसी पार से आने वाले आतंकवादियों ने पर्यटकों को चिन्हित कर हताहत किया — ऐसी बर्बरता के बाद ही सटीक और व्यापक कार्रवाई की आवश्यकता महसूस हुई।
घई ने मुरिदके और बहावलपुर क्षेत्रों पर की गई हवाई कार्रवाइयों की सुबह‑बाद की तस्वीरें दिखाते हुए बताया कि उन स्ट्राइकों में बने निशानों से स्पष्ट हुआ कि कई महत्वपूर्ण आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया। उन्होंने दर्शकों को बताया कि इन हमलों में सैकड़ों आतंकियों के मारे जाने के संकेत हैं और पाकिस्तान के कुछ सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति तथा स्थानीय स्तर पर आतंकियों के साथ उनकी नजदीकी भी तस्वीरों से परिलक्षित हुई।
डीजीएमओ ने जम्मू‑कश्मीर में दशकों से जारी हिंसा का संक्षिप्त खाका भी पेश किया। उन्होंने बताया कि 1980 के दशक के अंत से अब तक दर्ज़न हज़ारों आतंकी घटनाएं हुई हैं, लाखों लोग घाटी छोड़ने पर मजबूर हुए और इस अवधि में सैकड़ों सुरक्षा बल व हजारों नागरिकों की जानें गईं। यह पृष्ठभूमि, उनके अनुसार, अभियान की वैधता और आवश्यकता को समझने में सहायक है।
लेफ्टिनेंट जनरल घई ने कहा कि अभियान की योजना‑बद्ध प्रकृति पर विशेष जोर दिया गया। 22 अप्रैल से लेकर मई की शुरुआत तक ठोस विश्लेषण, लक्ष्य‑चयन और सीमापार चिंताओं को ध्यान में रखकर कार्रवाई नियोजित की गई। कार्रवाई से पहले सीमाई सतर्कता और अन्य आवश्यक तैनातियां भी की गईं ताकि जवाबी कार्रवाई का स्तर उचित और नियंत्रित रहे। साथ ही सूचना युद्ध के तंत्र को भी सक्रिय रूप से संचालित किया गया।
घई ने यह भी कहा कि उत्तर में हुई इन कार्रवाइयों के बाद पाकिस्तान की ओर से भी कुछ सीमा पार गोलीबारी दर्ज की गई। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि पाकिस्तानी पक्ष द्वारा हाल में जारी मरणोपरांत पुरस्कारों की सूची से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एलओसी पर भी किए गए हमलों में पाकिस्तानी स्थलों को भारी क्षति पहुंची होगी।
कुल मिलाकर सेना ने सम्मेलन में यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि ऑपरेशन सिंदूर एक आकस्मिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही चुनौती और विशेष तौर पर पहलगाम जैसे संगीन हादसों के बाद ली गई निर्णायक कार्रवाई थी। सेना ने यह भी कहा कि कार्रवाई का उद्देश्य केवल आतंकवादी ठिकानों को तहस‑नहस करना था, न कि स्थिति को बढ़ाना।