आईएमएफ से कर्ज पाने की कोशिश में पाकिस्तान एक बार फिर मुश्किल में फंस गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने नई किस्त जारी करने से पहले ऐसी शर्तें रख दी हैं, जिनसे सरकार का अपने ही केंद्रीय बैंक पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईएमएफ ने स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) के बोर्ड से वित्त सचिव को हटाने और वाणिज्यिक बैंकों की निगरानी से जुड़े संघीय सरकार के अधिकार समाप्त करने के लिए कानून में संशोधन की मांग की है।
स्वायत्तता बढ़ाने की सिफारिशें
पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि आईएमएफ ने एसबीपी अधिनियम में बदलाव की सिफारिश करते हुए डिप्टी गवर्नर के दो खाली पद तुरंत भरने को भी कहा है। ये सुझाव गवर्नेंस एंड करप्शन डायग्नोसिस मिशन रिपोर्ट का हिस्सा हैं। अगर ये लागू होते हैं तो केंद्रीय बैंक पर सरकार की प्रत्यक्ष निगरानी खत्म हो जाएगी, जबकि एसबीपी पूरी तरह सरकारी स्वामित्व वाली संस्था है।
पहले भी, वर्ष 2022 में, आईएमएफ दबाव में पाकिस्तान ने एसबीपी को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की थी और वित्त सचिव से मतदान का अधिकार छीन लिया था। इसके बाद से ब्याज दर और विनिमय दर तय करने जैसे अहम फैसले मौद्रिक नीति समिति के हाथ में आ गए। सोमवार को वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब ने कहा कि ब्याज दर तय करना एसबीपी का अधिकार क्षेत्र है और विनिमय दर बाजार ही निर्धारित करेगा।
आईएमएफ का तर्क और आगे की राह
आईएमएफ का मानना है कि बोर्ड से वित्त सचिव को हटाने से केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता और मजबूत होगी। वहीं, पाकिस्तान सरकार अभी इन सिफारिशों पर विचार कर रही है और अंतिम निर्णय बाकी है। सितंबर में आईएमएफ टीम कर्ज की करीब 1 अरब डॉलर की अगली किस्त को लेकर बातचीत के लिए पाकिस्तान जाएगी।
रिक्त पदों पर विवाद
वर्तमान में एसबीपी बोर्ड में गवर्नर और आठ गैर-कार्यकारी निदेशक शामिल हैं, जिनकी जिम्मेदारी संचालन और प्रबंधन की देखरेख करना है। लेकिन डिप्टी गवर्नर के तीन स्वीकृत पदों में से दो खाली हैं। पूर्व डिप्टी गवर्नर इनायत हुसैन का कार्यकाल नवंबर 2023 में समाप्त हो गया था और दोहरी नागरिकता के कारण उनकी पुनर्नियुक्ति पर अड़चन आ गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, खाली पदों में से एक के लिए नदीम लोधी का नाम तय हो चुका है, हालांकि कैबिनेट की मंजूरी अभी लंबित है।
पाकिस्तान इस समय 7 अरब डॉलर के आईएमएफ ऋण पैकेज पर निर्भर है। अगली किस्त पाने के लिए शर्तों को मानना सरकार की मजबूरी बन गई है।