अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उपभोक्ता उत्पाद सुरक्षा आयोग (CPSC) के तीन डेमोक्रेट सदस्य हटाने की अनुमति दे दी है। इस फैसले ने कार्यपालिका प्रमुख को बिना किसी ठोस कारण स्वतंत्र एजेंसी के सदस्यों को हटाने का अधिकार दे दिया है।
मामला तब शुरू हुआ था जब ट्रंप प्रशासन ने आयोग से तीन डेमोक्रेट सदस्य हटा दिए थे, जिन्हें बाद में एक संघीय अदालत ने पुनः नियुक्त कर दिया था। अब सर्वोच्च अदालत ने उस फैसले को पलटते हुए ट्रंप के फैसले को वैध ठहरा दिया है।
राष्ट्रपति को मिली ‘अकारण हटाने’ की शक्ति
इस निर्णय के पीछे अमेरिकी न्याय विभाग की यह दलील थी कि राष्ट्रपति को कार्यपालिका प्रमुख होने के नाते एजेंसियों पर प्रशासनिक नियंत्रण का पूरा अधिकार होना चाहिए। अदालत के रूढ़िवादी (कंजरवेटिव) जजों ने इस तर्क को स्वीकारते हुए कहा कि राष्ट्रपति किसी भी आयोग सदस्य को हटाने के लिए बाध्य नहीं हैं कि वह कारण बताए। हालांकि, लिबरल जजों ने इस मत से असहमति प्रकट की।
पुराने फैसले पर उठा सवाल
इस फैसले ने 1935 में आए ‘हंफ्रीज एग्जीक्यूटर केस’ को दोबारा चर्चा में ला दिया है, जिसमें अदालत ने कहा था कि स्वतंत्र एजेंसियों के सदस्यों को बिना वैध कारण नहीं हटाया जा सकता। अब यह ऐतिहासिक फैसला एक बार फिर समीक्षा के घेरे में आ गया है।
आयोग की स्वायत्तता पर बहस
1972 में गठित CPSC का उद्देश्य था कि उपभोक्ताओं को असुरक्षित उत्पादों से बचाया जा सके और यह एजेंसी किसी एक दल के अधीन न हो। हटाए गए डेमोक्रेट सदस्यों के वकीलों का कहना था कि इस तरह की कार्रवाई आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर करती है और यह कार्यपालिका व विधायिका के बीच संतुलन को प्रभावित कर सकती है।
आगामी प्रभाव और राजनीतिक संकेत
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को स्वतंत्र एजेंसियों के ऊपर अधिक प्रशासनिक नियंत्रण प्राप्त होगा। इससे भविष्य में अन्य संस्थाओं के कामकाज और संरचना पर भी असर पड़ सकता है। यह ट्रंप के लिए न केवल कानूनी राहत है, बल्कि आगामी राजनीतिक परिदृश्य में भी उनके लिए अनुकूल साबित हो सकता है।