भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताएं गतिरोध का शिकार होती दिख रही हैं। अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने गुरुवार को एक इंटरव्यू में बताया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी व्यापार टीम भारत के रुख से नाराज और निराश हैं। उन्होंने कहा कि बातचीत की शुरुआत में भारत ने रुचि दिखाई थी, लेकिन अब चर्चा की गति धीमी पड़ गई है। "अब यह भारत पर निर्भर करता है कि आगे क्या होगा," उन्होंने कहा। "प्रारंभिक रुचि के बाद भारत अब इस प्रक्रिया को खींच रहा है, जिससे वाशिंगटन में नाराज़गी है।"

भारतीय उत्पादों पर बढ़ा आयात शुल्क

इस बयान से ठीक एक दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले सभी उत्पादों पर आगामी 1 अगस्त से 25% शुल्क लगाने की घोषणा की। इसके साथ ही, रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने को लेकर भी भारत पर दंडात्मक कार्रवाई की बात सामने आई है, हालांकि इसकी राशि का खुलासा अभी नहीं किया गया है।

रूसी तेल के पुनर्निर्यात पर भी सवाल

अमेरिका ने यह भी आरोप लगाया है कि भारत प्रतिबंधित रूसी तेल खरीदकर उसे रिफाइन करके अन्य देशों को निर्यात कर रहा है। वित्त मंत्री बेसेंट ने कहा, "भारत ने वैश्विक प्रतिबंधों की भावना के अनुरूप आचरण नहीं किया है। प्रतिबंधित स्रोतों से तेल लेकर उसका निर्यात करना जिम्मेदार वैश्विक व्यवहार नहीं माना जा सकता।"

दबाव की रणनीति पर भारत का जवाब

विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ और दंडात्मक कदम अमेरिका की एक कूटनीतिक दबाव रणनीति हो सकती है, ताकि भारत को अधिक लाभकारी व्यापार शर्तें स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा सके। अमेरिका हाल ही में जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते कर चुका है, और अब भारत पर भी ऐसे ही समझौते के लिए दबाव बना रहा है।

भारतीय सरकार ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि देश अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी संभावित कदम उठाएगा। टैरिफ के प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है और किसी भी ऐसे निर्णय से बचा जाएगा जो भारत के दीर्घकालिक हितों को नुकसान पहुंचा सके।