गज़वा-ए-हिन्द: सहारनपुर के डीएम की गोलमोल रिपोर्ट !

खबर है कि सहारनपुर के जिला अधिकारी डॉ. दिनेश चन्द्र ने राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग को गज़वा-ए-हिन्द पर देवबन्द के दारुल उलूम से जारी फ़तवे पर अपनी गोलमोल रिपोर्ट एनसीपीसीआर को भेजी है। ज्ञातव्य है कि आयोग के अध्यक्ष प्रियांक मजूमदार ने जिला अधिकारी सहारनपुर को फरवरी के तीसरे सप्ताह में आदेश जारी किया कि वे 2015 की दारुल उलूम की वैबसाइट पर गज़वा-ए-हिन्द संबंधी फ़तवे के सन्दर्भ में तीन दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्यवाही करें। यह एक स्पष्ट आदेश था लेकिन डीएम सहारनपुर ने इसे उलझा दिया।

जिला अधिकारी ने देवबन्द के एसडीएम अंकुर वर्मा तथा सीओ अशोक सिसौदिया को दारुल उलूम देवबन्द में भेजा जिन्होंने मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी तथा नायब मोहतमिम मौलाना मौलाना अब्दुल खालिक से गज़वा-ए-हिन्द संबंधी फ़तवे के विषय में जानकारी मांगी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दारुल उलूम के इन दोनों पदाधिकारियों ने जिला अधिकारी, सहारनपुर द्वारा भेजे गए सरकारी अधिकारियों को मौखिक रूप से समझा दिया कि फ़तवा सही है जो सुन्नत अल नसाई किताब में पढ़ाया जाता है।

इसके बाद खबर आई कि जिला अधिकारी ने कोई कार्रवाई करने के बजाये आयोग को अपनी रिपोर्ट भेज दी। रिपोर्ट में गज़वा-ए-हिन्द के विषय में दारुल उलूम को न तो क्लीन चिट दी गई है और उस पर एफआईआर दर्ज न करने की बात कही गई है। इस प्रकार जिला अधिकारी ने स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के आदेश का उल्लंघन किया है। इतना ही नहीं, गज़वा-ए-हिन्द संबंधी फ़तवे को लेकर दारुल उलूम को एफआईआर दर्ज करने के आदेश की सूचना भी पहुंच गई।

इसका नतीजा यह हुआ कि दारुल उलूम के पदाधिकारियों ने 29 फरवरी 2024 को मजलिस-ए-शूरा की विशेष बैठक बुलाई जिसमें सरकार को धमकी दी गई कि यदि गज़वा-ए-हिन्द को लेकर कोई कार्यवाही की गई तो हम उसे अदालत में चुनौती देंगे।

गज़वा-ए-हिन्द का संबंध हदीस से बताया गया है जिसमें मौहम्मद साहब की भविष्यवाणी है कि इस्लाम के गाजी (योद्धा) गैर मुस्लिमों से जिहाद (धर्मयुद्ध) करेंगे। इसका अर्थ हिन्द को गैर मुस्लिमों से मुक्त करना है।

कुछ इस्लामिक विद्वानों का कथन है कि हिन्द का 70 प्रतिशत इस्लामीकरण हो चुका है। कुछ का कहना है कि 1000 साल से गज़वा-ए-हिन्द चल रहा है। भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले, मन्दिरों का विध्वंस व हिन्दुओं का नरसंहार एवं धर्मान्तरण, बंगाल का विभाजन, सौरावर्दी का डायरेक्ट एक्शन, मोपला विद्रोह, कश्मीर घाटी से पंडितों का पलायन और भारत पर आतंकी हमले, शाहीन बाग, सीएए, हिजाब आंदोलन, दुर्गा पूजा, हनुमान जयंती, जहांगीरपुरी का दंगा, नूंह की आगजनी आदि सब गज़वा-ए-हिन्द की मुहिम का ही अंग हैं।

गज़वा-ए-हिन्द के लिए देशभर में माहौल तैयार करने वाली ताकतें छद्मवेश में और ज़ाहिरा तौर पर सक्रिय हैं। पीएफआई और फुलवारी शरीफ के गुर्गों पर सुरक्षा तथा गुप्तचर एजेंसियों की निगाहें हैं। वे अपना काम कर रही हैं किन्तु राष्ट्र के ऊपर बड़ा खतरा है। सहारनपुर के जिला अधिकारी ने गज़वा-ए-हिन्द के मुद्दे को जिस तरीके से निपटाना चाहा, वह अत्यंत गैरजिम्मेदाराना है।

गज़वा-ए-हिन्द पर दारुल उलूम का फतवा गम्भीर विषय है क्योंकि वह विश्व के अनेक इस्लामिक देशों के विद्यार्थियों से जुड़ा है। यह मसला इतना संगीन है कि प्रमुख इस्लामिक विद्वान मौलाना कल्बे जव्वाद को 24 फरवरी को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर देवबन्दी मौलानाओं से गज़वा-ए-हिन्द पर स्थिति स्पष्ट करने को कहना पड़ा। उन्होंने पूछा कि गज़वा-ए-हिन्द हो चुका है या होना है। भारत पर मुहम्मद बिन कासिम के हमले को भी गज़वा-ए-हिन्द कहा जाता है। मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि दारुल उलूम नौजवान पीढ़ी को गज़वा-ए-हिन्द पर गुमराह न करे। मौजूदा वक्त में किसी की हिम्मत नहीं कि वह भारत की तरफ आँख उठा कर देख सके।

अतः यह तो कहा ही जा सकता है कि डीएम सहारनपुर व दारुल उलूम गज़वा-ए-हिन्द पर देश को गुमराह कर रहे हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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