ज्ञानी जैलसिंह: जन्मदिन पर स्मरण


भारत के 8वें राष्ट्र‌पति ज्ञानी जैल सिंह की कल जयंती थी। पंजाब के फरीद‌कोट जिले के संधवा ग्राम में 5 मई, 1916 को एक किसान परिवार में उनका जन्म हुआ। खेत की जुताई-निराई-गुड़ाई से लेकर फसलों की कटाई और मंडाई तक किसानी के सब काम किये। ढोर-डंगरों की कुट्टी-सानी की, नहलाया। किसान से रागी बने, हरमोनियम पर शबद सुनाये। गुरबानी गाई। ज्ञानी बने। मा. तारासिंह के सम्पर्क में आये। प्रजामंडल का गठन किया। 1946 के अंग्रेजी राज में तिरंगा फहरा कर जेल गए। जवाहरलाल नेहरू के निकट आ गए। 1969 में इंदिरा गांधी से निकटता बढ़ी। 1972 से 1977 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बने। 1982 में ज्ञानी जी को राष्ट्रपति बनाया गया।

पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरेवाला इंदिरा गाँधी का दाँव उल्टा पड़ा और 1984 में ऑप्रेशन ब्लू स्टार कराना पड़ा। अफवाहें उड़ीं कि राष्ट्र‌पति को ऑप्रेशन ब्लू स्टार की भनक तक नहीं थी।
राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चाएं रहीं कि इन्दिरा जी की हत्या के बाद नये प्रधानमंत्री राजीव गांधी और ज्ञानी जी के बीच तकरार भी हुई, तल्खियां भी बढ़ीं। राजीव के मुँह लगे कांग्रेस नेता के.के. तिवारी ने तो सार्वजनिक रूप से कह दिया कि राष्ट्रपति भवन खालिस्तानी आतंकियों का अड्डा है। उनके विरुद्ध‌ महाअभियोग चलाने की अफवाहें भी रोज-रोज उड़ती थीं।

जब राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद 29 नवम्बर, 1994 को पंजाब के रोपड़ जिले के किरतपुर साहब में ज्ञानी जी की कार को एक ट्रक ने टक्कर मारी तो वे बुरी तरह जख्मी हो गए। उनके पौत्र इन्द्रजीत सिंह ने खुलेआम कहा कि ज्ञानी जी की हत्या की साजिश की गई है। 25 दिसंबर, 1994 को पीजीआई चडीगढ़ में ज्ञानी जी की मृत्यु हो गई।

व्यक्तिगत रूप से ज्ञानी जैलसिंह एक खुशमिजाज, हंसमुख व मिलनसार व्यक्ति थे। एक बार वे कांग्रेस की चुनाव सभा में गांधी कॉलोनी मुज़फ्फरनगर आये थे। उन्होंने बीकेडी के चुनाव चिह्न-‘खेत जोतते किसान’ का मजाक उड़ाते हुए कहा था-‘इस ज‌माने में हल से खेत कौन जोतता है, आज तो ट्रैक्टर का जमाना है।’

मुजफ्फरनगर (बोपाड़ा) के सन्त महेन्द्रपाल सिंह का ज्ञानी जैलसिंह का पूरा परिवार बहुत सम्मान करता था। ज्ञानी जी ने लद्धावाला स्थित गुरु महाराज की गद्दी पर आने की इच्छा व्यक्त की किन्तु संतजी ने उन्हें रोक दिया। वे चुपचाप बोपाड़ा स्थित ‘मानवता धाम’ पर आये और किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई। जन्म दिन पर हमारा नमन!

गोविन्द वर्मा

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