बिंदु-बिंदु विचार


गेहूँ खरीद का झमेला

सरकारी सूत्रों के अनु‌सार इस वर्ष 30 अप्रैल तक 196 लाख टन से अधिक गेहूँ खरीदा गया, जबकि गत वर्ष इसी तारिख तक 219.05 लाख टन गेहूँ हुई थी। इस वर्ष 116 लाख किसानों ने सरकारी गेहूँ क्रय केन्द्रों पर 45,000 करोड़ रुपये का गेहूँ बेचा।

खबरें हैं कि गत वर्ष के मु‌काबले इस वर्ष क्रय केन्द्रों पर कम गेहूँ आ रहा है। मुजफ्फरनगर में मात्र 2078 किसानों ने गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण कराया और सिर्फ 445 किसानों ने गेहूँ बेचा। क्या अडाणी ने मुजफ्फरनगर आकर सारा गेहूँ खरीद ‌लिया? राहुल को इसकी जांच करानी चाहिए। अच्छा चुनावी मुद्दा है!

बिना नियुक्ति सरकारी खजाने की लूट

इस लोकतान्त्रिक कल्याणकारी व्यवस्था में फर्जी प्रमाणपत्रों के जरिये शिक्षा विभाग, स्कूलों में नौकरी करने के तो हजारों उदाहरण हैं लेकिन बिना नियुक्ति 35 वर्षों तक काम करने और सरकारी खजाने से वेतन लेने का अनोखा उदाहरण वर्षों पूर्व प्रकाश में आया। मुज़फ्फरनगर का सुशील कु‌मार नाम का व्यक्ति बिना नियुक्ति के ही मुज़फ्फरनगर कोषागार में चतुर्थश्रेणी कर्मचारी के रूप में ट्रेजरी में दाखिल हुआ और विभागीय प्रोन्नति पाते-पाते मुख्य खजांची के पद पर जा पहुंचा। सन 2021 में इस धोखाधड़ी की लिखित शिकाय‌तें आने के बाद‌ भी इस शख्स को अप्रैल 2024 में सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया गया। यह अधिकारियों की गैर-जिम्मेदारी, लापरवाही की मानसिकता को उजागर करने का एक ताजा उदाहरण है।

पर सुनेगा कौन?

लोकसभा के लिए मतदान का तीसरा दौर कल यानी 7 मई को सम्पन्न हो जायगा। समाचार है कि तीसरे दौर के चुनाव में 21 प्रतिशत दागी उम्मीद्‌वार माननीय बनने के उद्देश्य से मैदान में हैं। इनमें से कुछ पर हत्या, अपहरण, यौन शोषण जैसे गम्भीर अपराधों के मामले हैं। कुछ माफिया तो जेल में रहते-रहते चुनाव जीत जाते हैं जिनकी जीत पर लालू यादव, तेजस्वी, अखिलेश जश्न मनाते हैं।

भारतीय राजनीति की इस दुरावस्था पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण लोकतंत्र को खतरा उत्पन्न हो गया है। राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि लोग मतदान करने से विरत होते जा रहे हैं। पहले नेता अपराध बोध महसूस करते थे, अब उन्हें अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा का कोई भय नहीं। कुर्सी के लिए नेता आदर्शों को तिलांजलि दे रहे हैं। मतदाता बाहुबली उम्मीदवारों का बहिष्कार करें तो पार्टियों के मुखिया भी सुधर सकते हैं।

जातिवाद‌ व मज़ह‌ब की दलदल में फंसा मतदाता इस नेक सलाह पर कब अमल करेगा ?

यह सन्तोष की बात है कि जिला अधिकारी ने किसानों की शिकायतों पर तुरन्तकार्यवाही की और चकबन्दी विभाग के चार कर्मचारियों को निलंबित भी कर दिया। यह सवाल जरूर उठता है कि 30-30, पम्पन्नने से चकबंदी को लटकाये रखने और विभाग में भारी भ्रष्टाचार होने की गम्भीर शिकायतों के चलते राज्य मुख्यालय, मंडल मुख्यालय के वरिष्ठ विभागीय अधिकारी, आयुक्त एवं तिला आणिकारी इस धांधली की मोर से आँखें बन्द किले क्यूंबरे रहे।

हमें भलीभांति याद है कि जब चकबन्दी की शुस्मात कैराना तह‌सील से हुई यी तब आधिकारियों ने लूट का कैसा ताण्डव मचाया था। किसान नेता वीरेन्द्रवर्मा ने सामने आकर चकबन्दी विभाका में व्याप्‌तन्खसोट और भ्रष्याचार के बिस्टर जबरद‌स्त मुहिम चलाई थी। हमें यह भी मार है कि चकबन्दी विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध बाबू हुकुम सिंह (पूर्व मंत्री) ने शिद्दत के साथ मांग उठाई। वे मुनस्यार कगर कलेक्ट्रेट स्थित उप निदेशक चकबंदी की मेज परजा चढ़ेचे और वहीं से भ्रष्टाबाद के विरुद्ध गरजे थे।

यह भी प्रश्न उठता है कि जनप्रतिनिधि, सांसद, विधायक मंत्री विनाओं के भ्रष्टाचार और इापित कार्यप्रणाली के वितहर आवाज़ क्यूं नहीं उठाते। यदि भारतीय किसान यूनियन और किसान विकास भवन में न जा घुसते तो उनकी कौन सुनने वाला था।

गोविन्द वर्मा

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