हल्द्वानी….बरेली। इसे आप कहीं से भी जोड़ सकते हैं। 16 अगस्त, 1946 कलकत्ता से, जहां सोहरावर्दी के ‘डायरेक्ट एक्शन’ के आह्वान पर 30 हजार हिंदुओं की रातों-रात हत्या कर दी गई। केरल के मल्लापुरम से, जहां एक ही रात में ‘मोपला विद्रोह’ के के नाम पर 10,000 से अधिक हिंदुओ का नर नरसंहार किया गया। या फिर कश्मीरघाटी से, जहां फारूक अब्दुल्ला के लंदन भागने के बाद कश्मीरी पंड़ितों पर बर्बरता से जुल्म हुए और लाखों की संख्या में हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। इसे हैदराबाद को अपनी जागीर समझने वाले ओवैसी भाइयों की रोजाना की धमकियों से जोड़ा जा सकता है जो 100 करोड हिन्दुओं को सबक सिखाने की खुलेआम चेतावनी देते हैं। कर्नाटक के बंगलुरु को 6 घंटों तक दंगाई, आगजनी व कत्लोगारत में झोके रखते हैं। दिल्ली के जहांगीरपुरी या बिहार में फुलवारीशरीफ, समस्तीपुर अथवा रामनवमी, हनुमान जयंती, दुर्गा पूजा पर हुए पश्चिमी बंगाल के उपद्रवों से जोड़ सकते हैं अथवा फिर हरियाणा की नूंह हिंसा से, प्रयागराज व कानपुर से भी जोड़ा जा सकता है। हाल-फिलहाल यह हल्द्वानी और बरेली में हो रहा है।
हल्द्वानी के बनभूलपुरा और बरेली के श्यामगंज में जी कुछ हुआ है वह 1947 से पहले और अब वहीं आज़ादी के अमृतकाल में भी हो रहा है। दंगों, साजिशों की पृष्ठभूमि को बताने या दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
देवबंदी व बरेलवी मौलाना तथा पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया) जो करते आ रहे हैं, कर रहे हैं और कह रहे हैं, उसे समझने की आवश्यकता है। हिंदुस्तान की रग-रग में मुसलमान होने और गली-गली में पैट्रोल बम बनाने व चलाने वाले एक कड़वी सच्चाई को ट्रेलर के रूप में पेश करते हैं। और गुप्तचर विभाग तथा पुलिस से हर बार और बार-बार चूक हो जाती है।
हल्द्वानी की जिलाधिकारी भावना सिंह ने मीडिया के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत किए कि कैसे अतिक्रमण हटाने गई टीम पर योजनाबद्ध तरीके से हमले हुए । औरतों- बच्चों की ढाल बनाकर हर गली और हर छत से पथराव हुआ। वाहनों, दुकानों को क्षतिग्रस्त किया गया और आग लगाई गई। पूरे भारत में एक ही पैटर्न पर अराजकता फैलाई जा रही है। बरेली के पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी पहले जैसे घिसे-पिटे सामान्य स्थिति बहाल करने के बयान देकर शांति स्थापित करने की बातें कह रहे हैं।
ऐसा तो हर बार होता है। बार-बार होता है। दरअसल यह समस्या प्रशासनिक अथवा कानून व्यवस्था की है ही नहीं। इसका समाधान राजनीतिक स्तर पर होना आवश्यक है।
गोविन्द वर्मा